गुर्जर चक्रबर्ती सम्राट मिहिर भोज की जीवनी
लेखक-
श्री शोभाराम भाटी
प्रधान संपादक- वर्तमान सत्ता,
इंजी. राम प्रताप सिंह लम्बरदार
मिहिरभोज' गुर्जर प्रतिहार वंश का सर्वाधिक प्रतापी एवं
महान् शासक था। मूल नाम 'मिहिर' था और 'भोज' उपनाम था। उसका राज्य उत्तर में हिमालय, दक्षिण में नर्मदा, पूर्व में बंगाल और पश्चिम में सतलुज तक विस्तृत था,भोज प्रथम विशेष रूप से भगवान विष्णु के वराह अवतार का उपासक था,इनके साम्राज्य के विवरण भी बड़ा ही सुहाना और गर्व कराने लायक था
"इत चम्बल उत बेतवा,मालव सीम सुजान
दक्छिण दिशि हे नर्मदा ,यह गुर्जर की पहचान"
"राष्ट्र चाहे जैसा खतरनाक और अंधकार पूर्ण हो ,उसका अंत
दूर और दृस्टि से बाहर क्यों न हो आप में बल हो और चाहे आप थके हुए हों, आप साहसपूर्वक चले जाइए , परमात्मा पर भरोसा रखिये और न्याय से काम करते रहिये आपको सफलता मिलेगी, आप लक्च्या या मंजिल पर पहुच ही जायेंगे"" किसी महान व्यक्ति के विचार जो गुर्जर सम्राट के परिचय के साथ लगते हैं क्यों कि एक महान राज्य का सृजन करने में हिम्मत , शांति,
आत्मज्ञान, धीरज, विस्वाश की जरूरत पड़ती है नही तो इतिहाश बनाने की जगह किरदार इतिहाश में दबा दिए जाते हैं लिकिन मिहिर भोज के पास सब कुछ था परिणाम स्वरूप आज वो ख्याति वान है!
मिहिरभोज गुर्जर राजवंश के सबसे महान राजा माने जाते है। इन्होने लगभग 55 साल तक राज्य किया था। इनका साम्राज्य अत्यन्त विशाल था और इसके अन्तर्गत वे थेत्र आते थे जो आधुनिक भारत के राज्यस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियांणा, उडीशा, गुजरात, हिमाचल,मुलतान, पश्चिम बंगाल और कश्मीर से कर्नाटक आदि राज्यों हैं।
मिहिर भोज विष्णु भगवान के भक्त थे तथा कुछ सिक्कों मे इन्हे 'आदिवराह' भी माना गया है। मेहरोली नामक जगह इनके नाम पर रखी गयी थी। राष्टरीय राजमार्ग 24 का कुछ भाग गुर्जर सम्राट मिहिरभोज मार्ग नाम से जाना जाता है बिहार का भोजपुर इनके नाम से जाना जाता है
सम्राट मिहिर भोज ने 836 ईस्वीं से 889 ईस्वीं 54 तक साल तक राज किया। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में सम्राट मिहिर भोज के जीवन के बारे में विवरण मिलता है। गुर्जर सम्राट मिहिर भोज का जन्म सम्राट रामभद्र की महारानी अप्पा देवी के द्वारा सूर्यदेव की उपासना के प्रतिफल के रूप में हुआ माना जाता है मिहिर भोज की पत्नी का नाम चंद्रभट्टारिका देवी था
मिहिर भोज के सिक्के- गुर्जर प्रतिहार राजाओं के द्वारा चलाये
गए सिक्कों को उस काल में ग्रीक भासा के द्राम के नाम से जाना जाता था अभिलेखों में मिले जानकारी के अनूसार जिसमें कामा ,आहार, सियाडोनि के अभिलेखों के अनुसार गुर्जर प्रतिहार काल में मिहिर भोज के सिक्कों का नाम श्रीमदआदिवराह द्राम के जान से जाना जाता था मिहिर भोज के समय सिक्कों की माप के अनुसार ग्रीक- सासानी सिक्के उस समय ६६ ग्रेन तथा गुर्जर प्रतिहार कालीन सिक्के माप में ६५ ग्रेन के थे जो काफी उत्तम दर्जे के थे [1]
गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की विशाल सेना-विश्व की सुगठितऔर विशालतम सेना भोज की थी-इसमें 8,00,000 से ज्यादा पैदल करीब 90,000 घुडसवार,, हजारों हाथी और हजारों रथ थे 36 लाख की कुल सेना जिसको चारो दिशाओं में चौकियों पे तैनात कर रखा था एक टुकड़ी पंजाब में तैनात थी जो कश्मीर और अफगानिस्थान की तरफ से होने बाले हमलों के लिए तैयार रहती थी ।दुसरीं टुकड़ी की संभवतः मांडू का गढ़ रहा था जिसको सेना की सरहद मान सकते हैं तीसरी सेना की टुकड़ी बिहार के भोजपुर तथा कन्नौज पर तैनात थी इसके अतिरिक्त अरब से होने बाले हमलों के लिए ऊंट तथा घोड़ों का उपयोग सम्राट की अगुवाई में किया जाता था सेना पर गुर्जर सम्राट राज्य की आय का 50% व्यय करते थे जिसकी बजह से राज्य की विशालता कायम थी 915 ईसवी में भारत आये बगदाद के इतिहासकार ने लिखा है क "गुर्जर राजा के पास 36 लाख सेना थी जो वर्तमान दुनिया की सबसे बड़ी सेना थी"गुर्जर सम्राट की सेना में किसान तथा अन्य सभी भाग लेते थे (2) सागरताल के अभिलेख से मिहिर भोज ने "वाहिनिनापतीन" सब्द का उपुयोग किया जिससे साफ प्रदर्षित होता है कि सेना में एक से अधिक सेनापति ,सेनानायक होते थे इसने अभिलेखों में "तलक "बलाधिकृत का उल्लेख मिलता है (3)मिहिर भोज की सेना चार भागों में विभाजित थी पैदल ,अस्व सेना ,गज सेना ,रथ सेना तथा अन्य सामन्तों की सेना थी बलाधिकृत तथा बलाध्यछ अर्थात सेनापति तथा सेना प्रमुख मुख्य सेना अधिकारी होते थे और सेना की कमान राजा के हात में होती थी गुप्तचर विवस्ता का अधिकारी दुतपेशनिक होता था ।।
मिहिर भोज की उपाधियां- बेगुमरा ताम्रपत्र से "मिहिर" ग्वालियर प्रसस्ति से "मिहिर"(4) सिक्कों पर उपाधि "आदि बराह " सीमडोनि गाँव ललितपुर में मिले अभिलेख के अनुसार नाम "भोज देव"नाम मिलता है (5) , आर्यव्रत सम्राट , विष्णु भक्त तथा परमेश्वर तथा मिहिर भोज महान का दौलतपुर अभिलेख पूर्ण नाम के साथ है (6) ,परम भट्टारक, महाराजाधिराज ,प्रतिहार आदि उपाधियां हैं ।
सामान्य सव्दों में "मिहिर" तेजवान सूर्य के लिए उपयोग में लाया जाता है अर्थात जो जमीन से आद्रता सोख लेता है ठीक वैसे ही मिहिर अर्थात गुर्जर दुश्मनों की रगों का खून सामने आने से सोख जाता था ।
मिहिर भोज के सामन्त-
1-गोरखपुर के कलचुरी
2-चाटसु के गुहिल
3-शाकंभरी के चाहमान
4-मारवाड़ के प्रतिहार
5-प्रताप गढ़ के चौहमान
6-सौराष्ट्र के चालुक्य
7-धार के परमार
8-त्रिपुरी के कलचुरी
9-जेजकभुक्ति के चंदेल गुर्जर
10-मंडोर के गुर्जर
11-चंदेरी के गुर्जर प्रतिहार
12-दिल्ली के तंवर गुर्जर
13- राजोरगड के गुर्जर
14-पंजाब के अलखान गुर्जर
15-हाडला के चेदि
16-काठियावाड का बलवर्मन
17-पश्चिमोत्तर प्रदेश के शाही वंश
18-भड़ानक के भड़ाना
19-शिवपुरी के प्रतिहार
20-भड़ोच के चाप/ छावडी/चपराना
इनके अतिरिक्त भी इनके नीचे तथा अन्य छोटे बड़े सामन्त थे सभी सामंतों का प्रमुख सामंताधिपति होता था जिसका वर्णन गुर्जर राजाओं के अभिलेखों में है ।
मिहिर भोज के अभियान -गुर्जर सम्राट मिहिर भोज को सम्पूर्ण आर्यव्रत का चक्रबर्ती साम्राट कहने के लिए उनका साम्राज्य ही विशालता के शिखर पर था मिहिर भोज के सबसे प्रसिद्ध अभियान सिंध और मुल्तान के अरब के विरुद्ध किये गए थे जिनमें उनको सफलता मिली थी इसके बाद त्रिकोणीय युद्ध मे शामिल होना मिहिर भोज ने त्रिकोणी युद्ध मे शामिल होकर पाल वंश तथा राष्ट्रकूट वंश के अमोघवर्ष को कन्नौज से खदेड़ दिया था इसमे बाद पंजाब के पश्चिम प्रदेश जिसपे कश्मीर के शंकर वर्मन वंश का अधिकार था जिसको समाप्त करके मिहिर भोज ने सम्पूर्ण पंजाब (पेहोवा ) पर कब्जा कर लिया था इसके अतिरिक्त गुजरात , उज्जैन , राजपूताने , कालिंजर मंडल को जीत कर एक समृद्ध राज्य की स्थापना की थी ।
गुजरात की तरफ अभियान- सम्राट मिहिर भोज के काल में गुर्जर साम्राज्य की गुजरात में राज्य सीमा काठियावाड़। हड्डोला शिलालेखों से यह सुनिश्चित होता है कि काठिय़ावाड़ के वर्तमान जिले काठियावाड़ क्षेत्र के प्रमुख शहरों में प्रायद्वीप के मध्य में मोरबी राजकोट, कच्छ की खाड़ी में जामनगर, खंबात की खाड़ी में भावनगर मध्य-गुजरात में सुरेंद्रनगर और वधावन, पश्चिमी तट पर पोरबंदर और दक्षिण में जूनागढ़ हैं। पुर्तगाली उपनिवेश का भाग रहे और वर्तमान में भारतीय संघ में जुड़े दमन और दीव संघ शासित क्षेत्र काठियावाड़ के दक्षिणी छोर पर हैं। सोमनाथ का शहर और मंदिर भी दक्षिणी छोर पर स्थित हैं विजित प्रदेश को अपने सामन्त बलवर्मन के अधीन था ।
कालिंजर मंडल का अभियान-
पिता रामभद्र के कमजोर प्रशासन की बजह से कालिंजर मंडल उनके हात में रहते हुए भी विद्रोह के परिस्थिति बना रहा था जिसका पता बराह अभिलेख से पता लगता है जिसमे उनहोने परमार वंश तथा चंदेल वंश को पुनः अपना सामन्त नियुक्त किया था ।
कन्नौज के तरफ अभियान -मिहिर भोज के समय कन्नौज काफी उत्तम हालात में प्राप्त नही हुआ था वत्सराज के समय के जिते हुए प्रदेश कन्नौज मुंगेर भोजपुर आदि पर पाल वंशी देवपाल की तरफ से हमले हो रहे थे जिसको समाप्त करने के लिए मिहिर भोज ने
पाल वंश के साथ संघर्ष - देवपाल धर्मपाल का पुत्र एवं पाल वंश का उत्तराधिकारी था। इसे 810 ई. के लगभग पाल वंश की गद्दी पर बैठाया गया था। देवपाल ने लगभग 810 से 850 ई. तक सफलतापूर्वक राज्य किया। उसने 'प्राग्यज्योतिषपुर' (असम), उड़ीसा एवं नेपाल के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया था। लेकिन कन्नौज की तरफ हुए हमलों ने पाल वंश को खत्म करने की कगार पे लाकर खड़ा कर दिया था देवपाल को प्राप्त राज्य धर्मपाल का राज्य था लेकिन मुंगेर पर राजधानी स्थानांतरित पाल वंश ने गलती करदी जिसका खामयाजा पाल वंश को चुकाना पड़ा और देवपाल ने कन्नौज में हुए युद्ध मे मिहिर भोज के साथ हुए युद्ध मे भोजपुर पालवंश से छीन लिया हर पुनः युद्ध मे शामिल होने आए देवपाल को अपनी राजधानी तक गबानी पड़ी अंतिम। समय मे आये पाल वंशी कमजोर शाशक नारायणपाल (लगभग 860-915 ई.) पाल वंश के विग्रहपाल का पुत्र और उत्तराधिकारी था। इसका शासन काल काफ़ी बड़ा था। राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष ने पाल शासक नारायणपाल को पराजित किया था। प्रतिहारों ने इसका फायदा लेके पाल वंशी राजा से आमने सामने की लड़ाई मुंगेर में बुलाया जिसमे नारायण पाल को पराजय मिली और गुर्जर सम्राट ने पूर्व की ओर अपनी शक्ति का विस्तार करना प्रारम्भ कर दिया था। ऐसे समय में नारायणपाल को न सिर्फ़ मगध से हाथ धोना पड़ा, अपितु पाल राज्य का मुख्य भाग उत्तरी बंगाल भी उसके हाथ से निकल गया यही बजह है कि बिहार का भोजपुर और भोजपुरी से जरूर संबंध है ।।
अरबो के साथ संघर्ष-अरब के खलीफा मौतसिम वासिक, मुत्वक्कल, मुन्तशिर, मौतमिदादी थे। अरब के खलीफा ने इमरान बिन मूसा को सिन्ध के उस इलाके पर शासक नियुक्त किया था। जिस पर अरबों का अधिकार रह गया था। सिन्ध के अरब शासक इमरान बिन मूसा को पूरी तरह पराजित करके समस्त सिन्ध गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य का अभिन्न अंग बना लिया था। केवल मंसूरा और मुलतान दो स्थान अरबों के पास सिन्ध में इसलिए रह गए थे कि अरबों ने गुर्जर प्रतिहार सम्राट के तूफानी भयंकर आक्रमणों से बचने के लिए अनमहफूज नामक गुफाए बनवाई हुई थी जिनमें छिप कर अरब अपनी जान बचाते थे। सम्राट मिहिर भोज नही चाहते थे कि अरब इन दो स्थानों पर भी सुरक्षित रहें और आगे संकट का कारण बने इसलिए उसने कई बड़े सैनिक अभियान भेज कर इमरान बिन मूसा के अनमहफूज नामक जगह को जीत कर गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य की पश्चिमी सीमाएं सिन्ध नदी से सैंकड़ों मील पश्चिम तक पंहुचा दी और इसी प्रकार भारत देश को अगली शताब्दियों तक अरबों के बर्बर, धर्मान्ध तथा अत्याचारी आक्रमणों से सुरक्षित कर दिया था। इस तरह सम्राट मिहिर भोज के राज्य की सीमाएं काबुल से रांची तक सिंध में मिल चुकी थी ।घस्सन द्वारा नियुक्त मूसा इब्न यज़ीद अल झलिद की 836AD में युद्ध में बार बार मिल रही बार बार की पराजय से मौत हो जाने पर उसका बेटा अरमान सिंध का सूबेदार बना इस से पहले अरब गुर्जरों के बारे में इतना जान चुके थे कि युद्ध मैदान में इनके पेर कांपते थे गुर्जरों के सामने आने से लेकिन नव नियुक्त ऊर्जावान सूबेदार अरमान को अभी गुर्जरों की भाले और तीरों का खट्टा स्वाद चखना बांकी था , अरमान के पूर्वजों ने गुज्जरों से हार खाने के बाद अरबो के अधीन इलाके राजा विहीन हो चुके थे उन जगहों पर स्थानीय निवासी जाट ओर मेड फिर से दबंग हो गये थे ओर अरबों की कमज़ोरी का फ़ायदा उठा कर काबू से बाहर हो गये थे। अरमान ने किक्कन के इलाक़े के जाटों पर धावा बोलकर उनको फिर से काबू में किया ओर फिर मेड जाती के 3 हज़ार लोगों को क़त्ल करके उनको काबू में क़िया। कदबील का राजा मोहम्मद इब्न ख़लील जिस ने आज़ादी की घोषणा कर दी थी को भी पकड़ कर क़त्ल किया गया ओर कदबील की सारी की सारी आबादी खुसदर तब्दील कर दी गयी। जाटों ओर मेडों को काबू में रखने के लिए उसने किक्कन के पास अल बैजा नाम का क़िला बनाया जहाँ सेना की इक टुकड़ी हमेशा तैनात रहती थी। अरमान ने सकर अल मेड नाम की मेड जाती से इक सेना भी तैयार की जिसको जाटों के दमन के काम में लगाया गया। लेकिन सिंध दरिया के पूरव में गुज्जरों के इलाक़े के जाट दरिया पार करके अरबों को तंग कर रहे थे इस परेशानी से कराह उठे अरबों जाटों से ज़ाज़िया वसूला गया ओर वसूली के बाद ज़ाज़िया देने वाले जाटों क हाथ पर मोहर लगा दी गयी। अरमान ने अब जाटों की इक सेना तैयार की ओर उसकी सहयता से सिंध दरिया के पूरव में बसने वाले मेडों पर हमला किया। मेडों ने इक झील के बीचों बीच इक कल्लरी नाम के टापू से डट कर मुकाबला किया ओर गुज्जर सेना के आने का इंतज़ार करते रहे क्योंकि अब यह इलाक़ा गुज्जरों के अधीन था। अरब सेना के नज़ारी ओर यमानी सैनिकों में आपस में झगड़ा हो गया। अरमान ने यमनीओ का साथ दिया। इक नज़ारी सैनिक ऑमर इब्न अल अज़ीज़ अल हब्बरी ने अरमान को क़त्ल कर दिया। इस वक़्त मिहिर भोज गुज्जरों का राजा था, गुज्जरों के इलाक़े में अरबों की दखल अंदाज़ी उस की बर्दाश्त की हद से बाहर थी। फ़ज़ल इब्न महान सिंध का सूबेदार बनकर आया ओर उसने कल्लरी पर आक्रमण के लिए 60 किश्तियों में सवार सैनिक भेजे जिनमेसे सभी मोत के घाट उतार दिए गए असल मे यह सैनिक टुकड़ी मेड समुदाय के लोगों की थी जिनको अरमान ने अपने अधीन कर लिया था यही लोग अरमान की तरफ से युद्ध मे शामिल थे । बहुत से मेड मार दिए गये। आख़िर 839 AD में गुज्जरों के महान राजा मिहिर भोज ने सैनिक कार्यवाही करके सिंध दरिया के पूर्वी इलाक़े में अरमान द्वारा बनाई अलोर के पास छावनी को तबाह कर दिया ओर अरब सैनिकों का क़त्ल ए आम कर दिया। बचे हुए अरब दरिया पार करके भाग गए। उन छावनियों से कुछ बच कर अनमहफूज नामक गुफाए बनवाई हुई थी जिनमें छिप कर अरब अपनी जान बचाने में सफल रहे इनके विरुद्ध एक अंतिम युद्ध हुआ जिसमें अरबों के युद्ध करने का मनोबल ही खत्म कर दिया और मिहिर भोज के साथ हुए इन 30 वर्ष के असंख्य युद्धों से होने बाली जन धन की अपार हास्य को पूरा करने के लिए अरबों ने अपना ध्यान भारत से हटा लिया था । इसी दौरान पूर्वी भारत के पाल शासक धर्मपाल ने जो की पंजाब तक आगे बढ़ चुका था ने मोके का फ़ायदा उठाकर पश्चिमी पंजाब में अरबों के इक इलाक़े यवन पर धावा बोल कर उस पर क़ब्ज़ा कर लिया। यह बात मिहिर भोज को हजम नही हुई ओर गुज्जर सेना ने कन्नौज के पास धर्मपाल की पंजाब से लौट रही सेना पर जबरदस्त हमला करके पालों को धूल चटा दी। धर्मपाल मुश्किल से जान बचा कर बंगालभाग गया।अरबों ओर गुज्जरों क बीच संघर्ष के लंबे दौर में हम देखते हैं की यह कोई छोटी-मोटी जंग नहीं थी बल्कि कई साल चलने वाला इक युद्ध था जिसमें कई जंगे हुईं जो राजस्थान से अधिक मध्य प्रदेश (उज्जैन), गुजरात(वल्लभी, नान्दोल आदि), यह युद्ध थे गुर्जर और अरब भेड़ियों के बीच जिसका सामना गुर्जर वंश के प्रत्येक महाराज ने अपनी प्रजा की सुरक्छा नारायण की तरह की थी इन युद्धों का नतीजा गुज्जरों की जीत ओर अरबों की हार में निकला ओर गुज्जर सरदार अरबों से भारत की हिफ़ाज़त करते रहे मूलतः भारत मे जो हमले हुए वो थल मार्ग से हुए थे और राष्ट्रकूट पूर्ण सुरक्छित थे उनपर उनकी प्रजा पर कोई बाहरी हमला संभव ही नही था क्यों कि उनसे पहले गुर्जर राजाओं के राज्य की सरहदें धरती से समुद्र तक सहेज कर चल रही थी गुर्जरों ने सिर्फ आने बाले दुश्मनों से अपने राज्य देश को प्रजा को बचाया था जिसके चलते गुर्जर सम्राट नारायण और प्रतिहार की उपाधि से जाने गए ।।
गुर्जर साम्राज्य की राजधानी- गुर्जर साम्राज्य की राजधानी क्रमसः दो भागों में विभक्त थी प्रथम मुख्य राजधानी ,उप राजधानी ,सांस्कृतिक राजधानी , जिनमे मुख्य राजधानी के तौर पर कन्नौज उज्जैन थी उप राजधानी के बतौर ग्वालियर ,भोजपुर ,मिहिरोली, पेहोवा ,तथा गुजरात मे थी इसके अतिरिक्त सांस्कृतिक राजधानी उज्जैन जो कि छीप्र नदी के किनारे और ओसिया थी तथा बटेस्वर थी चम्बल नदी के किनारे थ।
गुर्जर कालीन कला -गुर्जर सम्राटों के हातो बनाये गए मंदिर
राज्यस्थान गुजरात मध्यप्रदेश कन्नौज हिमाचल तक प्राप्त हुए हैं ।गुर्जर प्रतिहार कालीन कुछ मुख्य मंदिरों का हम वर्णन करते हैं जो इतिहास प्रसिद्ध हैं मध्यप्रदेश मुरैना इस्थित
बटेस्वरा के 300 कुल मंदिरों का समूह जो एक खुद विश्वकर्मा के बनाये प्रतीत होते हैं जिनका निर्माण गुर्जर सम्राट मिहिर भोज ने कराया था । चोंसठ योगनी मंदिर जिसकी
नकल करके संसद भवन का निर्माण कराया गया है "शनीचरा के पहाड़ बानमोर के नजदीक गुर्जर प्रतिहार कालीन तालाब जो जर्जर अवस्था मे है तथा विष्णु की मूर्ति चोरी की जा चुकी है रथ पर विराजे विष्णु की थी प्रतिमा रिपोर्ट के अनुसार मंदिर के अधिष्ठान भाग(वेदीबंद) साबुत है। इसके तल वाले हिस्से पर मंदिर का गर्भगृह और मंडप भी मौजूद है। इस मंदिर का शिखर टूटा हुआ था। और मंदिर की मुख्य प्रतिमा रथ पर विराजे हुए विष्णु की थी। अधिष्ठान के नीचे देवी देवताओं की मूर्तियां बनी हुई थीं। जिनमें गणेश, विष्णु, ब्रह्मा, कार्तिकेय की प्रतिमाएं ललिताशन में थीं, जबकि मंदिर का दक्षिण की तरफ वाला हिस्सा पूरी तरह से ढह चुका था।
बनी हुई थीं। जिनमें गणेश, विष्णु, ब्रह्मा, कार्तिकेय की प्रतिमाएं ललिताशन में थीं, जबकि मंदिर का दक्षिण की तरफ वाला हिस्सा पूरी तरह से ढह चुका था ,मंदिर के पास ही पुरातत्वविदों को एक कुंड भी मिला था। जो प्रतिहार शैली में बना हुआ था। कच्छपघात और प्रतिहार वास्तु शैली के कुछ और मंदिर भी इस कुंड के आसपास होने पाए गए थे, लेकिन अब इनके निशान और भी मिट गए हैं। ऐसे में अगर मंदिर के संरक्षण का काम शुरू नहीं हुआ तो मंदिर का बचा खुचा हिस्सा भी नष्ट हो जाएगा। क्योंकि मंदिर के ज्यादातर भग्नावशेष लगातार यहां से गायब होते जा रहे हैं और स्थानीय लोगों को भी इनके महत्व का पता नहीं है।शनिश्चरा के जंगलों में मिला विष्णु मंदिर 10वीं सदी का है। इस मंदिर का अध्ययन कर 2012 में ही रिपोर्ट आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को भेज दी थी। मंदिर के जीर्णोद्घार आदि का काम उन्हें ही करवाना होता है।(7)" इसके अतिरिक्त गोहद चोक ग्वालियर इटवाह हाईवे के पास खनन एरिया में गुर्जर कालीन शिव मंदिर जो पत्थर की खदानों में रोज होते बारूद के विस्फोट को सहता हुआ भी अटल खड़ा है लेकिन पुरातत्व विभाग के कान पर जूं तक नही रेंगती गुर्जर महाराजाओं के अवसेस संभालने के लिए आगे चल कर फूप अटेर हाईवे मार्ग पर दुल्हागंन में इस्थित बौरेश्वर शिव मंदिर काफी अच्छी हालात में है इसके अतिरिक्त इस खबर का जिक्र वीरेन्द्र पाण्डेय, जिला पुरातत्व अधिकारी भिण्ड जिन्होंने पत्रिका अखबार के माध्यम से जग जाहिर कराया था जिसका लेखन कार्य गौरव सेन ने किया था ।मडखेरा का गुर्जर प्रतिहार कालीन सूर्य मन्दिर जो बुंदेलखंड के टीकमगढ जिला मुख्यालय से 20km. दूर अपने आँचल मे गुर्जर प्रतिहार कला का मन्दिर आज भारत के गिने चुने सूर्य मन्दिरो मे अपनी स्थिती काफी मजबूती से कायम किये है !प्रतिहार कालीन ऊमरी का सूर्य मन्दिर मध्य प्रदेश के जिला टीकमगढ के ऊमरी मे इस्थित है गुर्जर प्रतिहार कालीन विध्यमान प्राचीनकाल का सूर्य मन्दिर जिसका निर्माण सातवी शताब्दी के अन्तिम दशक तथा आठवी शताब्दी का निर्माण काल बताया जा रहा हो इस मन्दिर मे गुर्जर प्रतिहार राजाऔं का एक अभिलेख भी मिला हे लेकिन पत्थर के छरण की बजह से ऊसका पढा जाना असम्भव हे इस मन्दिर के गर्भ ग्रह मे सप्त अश्व युक्त रथ पर आसीन सूर्य नारायण भगवान की खडगासन मूर्ति बहुत ही सुन्दर तथा मनोहारी हैं ।आपेश्वर महादेव मंदिर रामसीन गाँव का इस मंदिर का पुजारी कस्च्याप गोत्रीय रावल ब्राह्मण है , गुजरात मे गुर्जर कालीन साबरकांठा में मौजूद है इसके अतिरिक्त लाखेस्वर मंदिर उत्तराखंड के अल्मोड़ा के 24 शिव मंदिर तथा कुल 240 मंदिर जिनमे 120 सबूत हैं आज भी हिमाचल के कुल्लू ,मध्य भारत के खुजराओ तेली का मंदिर चतुर्भुज मंदिर , देवगढ़ मंदिर,चंदेरी , दधिमाता मंदिर , समाधेस्वर मंदिर चित्तोड़ गढ़ ,आभानेरी की बाबड़ी , चंदेरी की बाबड़ी बड़ी छोटी बाबड़ी ,महरौली, ओसिया आदि काफी प्रसिद्ध ेेऐतिहआशिक स्थानों को गुर्जर प्रतिहारों ने खून पसीने से बनाया था ,
गुर्जर प्रतिहार वंश -
1-नागभट्ट (730-760 ईसवी)
2-ककुस्थ और देवशक्ति (760-778इस्वी)
3-वत्सराज (778-800इस्वी ) पत्नी सुंदरी देवी
4-नागभट्ट 2 (800-833इस्वी )
5-रामभद्र (833-835इस्वी ) पत्नी -महारानी अप्पा देवी
6- सम्राट मिहिर भोज(835-889 इस्वी),पत्नी -महारानी चंद्रभट्टारीक देवी
7-सम्राट महेन्द्रपाल प्रथम(885-910इस्वी)
8- सम्राट महिपाल (910-930इस्वी)
9-भोज द्वतीय (930-931)
10-विनायकपाल (931-944इस्वी)
11-महेन्द्रपाल द्वतीय (944-947इस्वी)
12-देवपाल (947-955इस्वी)
13-विजयपाल(955-985इस्वी)
14-राज्यपाल देव गुर्जर(985-1019)
15-त्रिलोचलपाल गुर्जर(1019-1030इस्वी)
16-यशपाल गुर्जर (1030-1040इस्वी ), कुल 300 साल आर्यवृत पर गुर्जर वंश के इस परिवार ने राज किया था
गुर्जर राजवंश-
भड़ोच के (छाबड़ा/चाप/चपराना)
दद्दा1(580इस्वी),जयभट्ट1(605इस्वी),
दद्दा2 (प्रसंतराग-633 इस्वी),
दद्दा 3-(655इस्वी),जयभट्ट2-(680इस्वी),
दद्दा4-(706-734इस्वी), जयभट्ट3,दद्दा5-बाहुसहाय,
जयभट्ट4 -
भड़ोच के गुर्जरो ने हर्ष को कड़ी चुनोतियाँ देकर अकन राज्य स्थापित किया था इससे पहले दत्त गुर्जर नाम का गुर्जर वंशी हूण के तोरमाण का कर संग्रह कर्ता नियुक्त किया गया था जिसका नाम 499इस्वी की तारीख में आता है( 455-666इस्वी) तक हूण ने राज किया इनको अधिकतर इतिहासकार गुर्जर कहते हैं ,इनसे पहले मौखरी/मोरी वंश गुर्जरों का था आज भी मोरी गोत्र मालवा और चित्तौड़गढ़ के आसपास गुर्जरों में पाया जाता है , कुशाण वंश (65ईसा पूर्व-375ईस्वी)तक कुशाण गुर्जर वंशियों ने भारत के अखंड स्वरूप को विश्व पटल पर लेकर आये जिनसे कुसान ,कसाना,दोराता,अधाना, नेकाड़ी,चांदना, गोरसी,कपासिया आदि दर्जनों गोत्र निकले जिनका महान राजा कनिष्क जिन होने 78 इस्वी में शक संवत की स्थापना की थी , नर्सिंगढ के खींची गुर्जर ,बगड़ावत वंशी चौहान, चेंची वंशी चौहान अजमेर पुष्कर पर राज किया था ,1100इस्वी के बाद गुर्जरों के पास कम ही राजवंश रह गए थे लेकिन फ़ीर भी गोविंदगढ़ ,
घुरैया बसई का घुरैया राजवंश-
महाराज श्री श्योपत सिंह घुरैया (1713-1750इस्वी)
महाराज राम पाल घुरैया (1750-1820इस्वी)
राजा राम घुरैया (1820इस्वी )
स्वर्गीय महाराज मुंशी सिंह घुरैया
वर्तमान इंजी रविन्द्र सिंह घुरैया तथा अन्य प्रसिद्ध घुरैया व्यक्तित्व एस पी यशवंत सिंह घुरैया , स्वामी हरिगिरि महाराज , श्री उत्तम सिंह घुरैया सरसपुरा , श्री नवल सिंह घुरैया ,सरनाम सिंह डीएसपी राजेन्द्र सिंह, डीएसपी भूपेंद्र सिंह आदि हैं ।राजोरगढ़ मंथन देव गुर्जर , फरीदाबाद अर्थात भड़ानक देश के भड़ाना भड़ाना राज्य की ज्ञात वंशावली में,
कुमार पाल प्रथम (12वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध), महाराजाधिराज अजयपाल (1150ई0)
हरिपाल (1170 ई0),
सोहन पाल (1196 ई0),
कुमार पाल द्वितीय थे।
दिल्ली के तंवर गुर्जर महाराज अनंगपाल तंवर वंश ,जयपाल खटाना सिंध , सबलगढ़ के बैसला(1700इस्वी) , शिवपुरी गुना के बीहड़ों में डांडे की खिरक इस्थित गुर्जर शेरों की गड़ी आज भी मौजूद है (1700इस्वी) घुरैया गोत्र के वंश, लंधौरा रियासत, समथर रियासत और झबरेडा रियासत लंधौरा रियासत के वर्तमान महाराजा श्री कुँवर प्रणव सिंह जी परमार हैं (पँवार वंश-"1700-1947इस्वी), समथर रियासत के वर्तमान महाराजा श्री रणजीत सिंह जी जूदेव (खटाणा) (1730-1947इस्वी)
1- श्री नौने शाह (1735-1740)
2-श्री मदन सिंह जूदेव(1740-1745)
3-श्री राजधर विश्हना सिंह(1745-1790)
4- श्री राजा देवी सिंह जूदेव (1791-1800)
5-श्री राजा रणजीत सिंह (प्रथम)(1800-1815)
6- श्री राजा रणजीत सिंह (द्वितीय) (1815-1827)
7- श्री महाराजा हिन्दू पति जूदेव (1827-1858)
8-श्री महाराजा चतुर सिंह जूदेव(1865-1896)
9-श्री महाराजा वीर सिंह जूदेव (1896-1935)
10- श्री महाराजा राधाचरण सिंह जूदेव (1935-1947)
11- श्री महाराजा रणजीत सिंह जूदेव (तृतीय ) (1947- अब तक,झबरेडा रियासत के यशवीर व कुलवीर सिंह इन तीनो गुर्जर प्रतिहार रियासतों के महल और किले बहुत ही खूबसूरत है
मिहिर भोज सम्राट का कुशल मंत्रिमंडल-
1-महामंत्री
2-महासंधिविग्रहक
3-महासेनापति
4-महादण्डनायक
5-महाप्रतिहार
6-अमात्य
7-महाप्रधर्माध्यक्च
8-महा लक्चपरलिक
9-महासामंत
इन सभी नवरत्न पदों से मिहिर भोज का दरबार सजता था ।
व्यावसायिक संघ -गुर्जर सम्राट मिहिर भोज के समय संघ का भी उल्लेख आता है पेहोवा अभिलेख के अनुसार घोड़ों के व्योपारियों का एक संघ भी बना था , सियादोनी अभिलेख के अनुसार तमोली, तेली, कलार, तथा ग्वालियर अभिलेख से मालकारों का जिक्र आता है अन्य अभिलेख से कुंभकारों का भी जिक्र आता है ये सभी संघ अपनी कमाई का कुछ भाग राज्य के विकाश के लिए राजकोश में देते थे जो आपदा के समय आम जनता के ही काम आता था ।
भूमि नापने की इकाई -गुर्जर राजवंश में भूमि नापने की 7 इकाइयां थी कुलयवाप,द्रोणवाप, पाठक,हल, हस्त, पादावर्त, नल उपयोग में थी
संदर्व-
1- एपिग्राफिया इण्डिका भाग 1 पेज 175,
2-कल्हड़क्रत राजतरंगिणी 8/2518,
3-एपिग्राफिया इण्डिका भाग 1 पेज 159,
4-एपिग्राफिया इण्डिका भाग 1 पेज 184-190,
5-एपिग्राफिया इण्डिका भाग 1 पेज 162-179,
6-एपिग्राफिया इण्डिका भाग 5 पेज 211,
7- 1 सितम्बर 2015 दैनिक जागरण ,एसआर वर्मा, डिप्टी डायरेक्टर पुरातत्व संग्रहालय एवं अभिलेखागार ग्वालियर।।
लेखक-
श्री शोभाराम भाटी
प्रधान संपादक- वर्तमान सत्ता,
इंजी. राम प्रताप सिंह लम्बरदार
मिहिरभोज' गुर्जर प्रतिहार वंश का सर्वाधिक प्रतापी एवं
महान् शासक था। मूल नाम 'मिहिर' था और 'भोज' उपनाम था। उसका राज्य उत्तर में हिमालय, दक्षिण में नर्मदा, पूर्व में बंगाल और पश्चिम में सतलुज तक विस्तृत था,भोज प्रथम विशेष रूप से भगवान विष्णु के वराह अवतार का उपासक था,इनके साम्राज्य के विवरण भी बड़ा ही सुहाना और गर्व कराने लायक था
"इत चम्बल उत बेतवा,मालव सीम सुजान
दक्छिण दिशि हे नर्मदा ,यह गुर्जर की पहचान"
"राष्ट्र चाहे जैसा खतरनाक और अंधकार पूर्ण हो ,उसका अंत
दूर और दृस्टि से बाहर क्यों न हो आप में बल हो और चाहे आप थके हुए हों, आप साहसपूर्वक चले जाइए , परमात्मा पर भरोसा रखिये और न्याय से काम करते रहिये आपको सफलता मिलेगी, आप लक्च्या या मंजिल पर पहुच ही जायेंगे"" किसी महान व्यक्ति के विचार जो गुर्जर सम्राट के परिचय के साथ लगते हैं क्यों कि एक महान राज्य का सृजन करने में हिम्मत , शांति,
आत्मज्ञान, धीरज, विस्वाश की जरूरत पड़ती है नही तो इतिहाश बनाने की जगह किरदार इतिहाश में दबा दिए जाते हैं लिकिन मिहिर भोज के पास सब कुछ था परिणाम स्वरूप आज वो ख्याति वान है!
मिहिरभोज गुर्जर राजवंश के सबसे महान राजा माने जाते है। इन्होने लगभग 55 साल तक राज्य किया था। इनका साम्राज्य अत्यन्त विशाल था और इसके अन्तर्गत वे थेत्र आते थे जो आधुनिक भारत के राज्यस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियांणा, उडीशा, गुजरात, हिमाचल,मुलतान, पश्चिम बंगाल और कश्मीर से कर्नाटक आदि राज्यों हैं।
मिहिर भोज विष्णु भगवान के भक्त थे तथा कुछ सिक्कों मे इन्हे 'आदिवराह' भी माना गया है। मेहरोली नामक जगह इनके नाम पर रखी गयी थी। राष्टरीय राजमार्ग 24 का कुछ भाग गुर्जर सम्राट मिहिरभोज मार्ग नाम से जाना जाता है बिहार का भोजपुर इनके नाम से जाना जाता है
सम्राट मिहिर भोज ने 836 ईस्वीं से 889 ईस्वीं 54 तक साल तक राज किया। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में सम्राट मिहिर भोज के जीवन के बारे में विवरण मिलता है। गुर्जर सम्राट मिहिर भोज का जन्म सम्राट रामभद्र की महारानी अप्पा देवी के द्वारा सूर्यदेव की उपासना के प्रतिफल के रूप में हुआ माना जाता है मिहिर भोज की पत्नी का नाम चंद्रभट्टारिका देवी था
मिहिर भोज के सिक्के- गुर्जर प्रतिहार राजाओं के द्वारा चलाये
गए सिक्कों को उस काल में ग्रीक भासा के द्राम के नाम से जाना जाता था अभिलेखों में मिले जानकारी के अनूसार जिसमें कामा ,आहार, सियाडोनि के अभिलेखों के अनुसार गुर्जर प्रतिहार काल में मिहिर भोज के सिक्कों का नाम श्रीमदआदिवराह द्राम के जान से जाना जाता था मिहिर भोज के समय सिक्कों की माप के अनुसार ग्रीक- सासानी सिक्के उस समय ६६ ग्रेन तथा गुर्जर प्रतिहार कालीन सिक्के माप में ६५ ग्रेन के थे जो काफी उत्तम दर्जे के थे [1]

मिहिर भोज की उपाधियां- बेगुमरा ताम्रपत्र से "मिहिर" ग्वालियर प्रसस्ति से "मिहिर"(4) सिक्कों पर उपाधि "आदि बराह " सीमडोनि गाँव ललितपुर में मिले अभिलेख के अनुसार नाम "भोज देव"नाम मिलता है (5) , आर्यव्रत सम्राट , विष्णु भक्त तथा परमेश्वर तथा मिहिर भोज महान का दौलतपुर अभिलेख पूर्ण नाम के साथ है (6) ,परम भट्टारक, महाराजाधिराज ,प्रतिहार आदि उपाधियां हैं ।
सामान्य सव्दों में "मिहिर" तेजवान सूर्य के लिए उपयोग में लाया जाता है अर्थात जो जमीन से आद्रता सोख लेता है ठीक वैसे ही मिहिर अर्थात गुर्जर दुश्मनों की रगों का खून सामने आने से सोख जाता था ।
मिहिर भोज के सामन्त-
1-गोरखपुर के कलचुरी
2-चाटसु के गुहिल
3-शाकंभरी के चाहमान
4-मारवाड़ के प्रतिहार
5-प्रताप गढ़ के चौहमान
6-सौराष्ट्र के चालुक्य
7-धार के परमार
8-त्रिपुरी के कलचुरी
9-जेजकभुक्ति के चंदेल गुर्जर
10-मंडोर के गुर्जर
11-चंदेरी के गुर्जर प्रतिहार
12-दिल्ली के तंवर गुर्जर
13- राजोरगड के गुर्जर
14-पंजाब के अलखान गुर्जर
15-हाडला के चेदि
16-काठियावाड का बलवर्मन
17-पश्चिमोत्तर प्रदेश के शाही वंश
18-भड़ानक के भड़ाना
19-शिवपुरी के प्रतिहार
20-भड़ोच के चाप/ छावडी/चपराना
इनके अतिरिक्त भी इनके नीचे तथा अन्य छोटे बड़े सामन्त थे सभी सामंतों का प्रमुख सामंताधिपति होता था जिसका वर्णन गुर्जर राजाओं के अभिलेखों में है ।
मिहिर भोज के अभियान -गुर्जर सम्राट मिहिर भोज को सम्पूर्ण आर्यव्रत का चक्रबर्ती साम्राट कहने के लिए उनका साम्राज्य ही विशालता के शिखर पर था मिहिर भोज के सबसे प्रसिद्ध अभियान सिंध और मुल्तान के अरब के विरुद्ध किये गए थे जिनमें उनको सफलता मिली थी इसके बाद त्रिकोणीय युद्ध मे शामिल होना मिहिर भोज ने त्रिकोणी युद्ध मे शामिल होकर पाल वंश तथा राष्ट्रकूट वंश के अमोघवर्ष को कन्नौज से खदेड़ दिया था इसमे बाद पंजाब के पश्चिम प्रदेश जिसपे कश्मीर के शंकर वर्मन वंश का अधिकार था जिसको समाप्त करके मिहिर भोज ने सम्पूर्ण पंजाब (पेहोवा ) पर कब्जा कर लिया था इसके अतिरिक्त गुजरात , उज्जैन , राजपूताने , कालिंजर मंडल को जीत कर एक समृद्ध राज्य की स्थापना की थी ।
गुजरात की तरफ अभियान- सम्राट मिहिर भोज के काल में गुर्जर साम्राज्य की गुजरात में राज्य सीमा काठियावाड़। हड्डोला शिलालेखों से यह सुनिश्चित होता है कि काठिय़ावाड़ के वर्तमान जिले काठियावाड़ क्षेत्र के प्रमुख शहरों में प्रायद्वीप के मध्य में मोरबी राजकोट, कच्छ की खाड़ी में जामनगर, खंबात की खाड़ी में भावनगर मध्य-गुजरात में सुरेंद्रनगर और वधावन, पश्चिमी तट पर पोरबंदर और दक्षिण में जूनागढ़ हैं। पुर्तगाली उपनिवेश का भाग रहे और वर्तमान में भारतीय संघ में जुड़े दमन और दीव संघ शासित क्षेत्र काठियावाड़ के दक्षिणी छोर पर हैं। सोमनाथ का शहर और मंदिर भी दक्षिणी छोर पर स्थित हैं विजित प्रदेश को अपने सामन्त बलवर्मन के अधीन था ।
कालिंजर मंडल का अभियान-
पिता रामभद्र के कमजोर प्रशासन की बजह से कालिंजर मंडल उनके हात में रहते हुए भी विद्रोह के परिस्थिति बना रहा था जिसका पता बराह अभिलेख से पता लगता है जिसमे उनहोने परमार वंश तथा चंदेल वंश को पुनः अपना सामन्त नियुक्त किया था ।
कन्नौज के तरफ अभियान -मिहिर भोज के समय कन्नौज काफी उत्तम हालात में प्राप्त नही हुआ था वत्सराज के समय के जिते हुए प्रदेश कन्नौज मुंगेर भोजपुर आदि पर पाल वंशी देवपाल की तरफ से हमले हो रहे थे जिसको समाप्त करने के लिए मिहिर भोज ने
पाल वंश के साथ संघर्ष - देवपाल धर्मपाल का पुत्र एवं पाल वंश का उत्तराधिकारी था। इसे 810 ई. के लगभग पाल वंश की गद्दी पर बैठाया गया था। देवपाल ने लगभग 810 से 850 ई. तक सफलतापूर्वक राज्य किया। उसने 'प्राग्यज्योतिषपुर' (असम), उड़ीसा एवं नेपाल के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया था। लेकिन कन्नौज की तरफ हुए हमलों ने पाल वंश को खत्म करने की कगार पे लाकर खड़ा कर दिया था देवपाल को प्राप्त राज्य धर्मपाल का राज्य था लेकिन मुंगेर पर राजधानी स्थानांतरित पाल वंश ने गलती करदी जिसका खामयाजा पाल वंश को चुकाना पड़ा और देवपाल ने कन्नौज में हुए युद्ध मे मिहिर भोज के साथ हुए युद्ध मे भोजपुर पालवंश से छीन लिया हर पुनः युद्ध मे शामिल होने आए देवपाल को अपनी राजधानी तक गबानी पड़ी अंतिम। समय मे आये पाल वंशी कमजोर शाशक नारायणपाल (लगभग 860-915 ई.) पाल वंश के विग्रहपाल का पुत्र और उत्तराधिकारी था। इसका शासन काल काफ़ी बड़ा था। राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष ने पाल शासक नारायणपाल को पराजित किया था। प्रतिहारों ने इसका फायदा लेके पाल वंशी राजा से आमने सामने की लड़ाई मुंगेर में बुलाया जिसमे नारायण पाल को पराजय मिली और गुर्जर सम्राट ने पूर्व की ओर अपनी शक्ति का विस्तार करना प्रारम्भ कर दिया था। ऐसे समय में नारायणपाल को न सिर्फ़ मगध से हाथ धोना पड़ा, अपितु पाल राज्य का मुख्य भाग उत्तरी बंगाल भी उसके हाथ से निकल गया यही बजह है कि बिहार का भोजपुर और भोजपुरी से जरूर संबंध है ।।
अरबो के साथ संघर्ष-अरब के खलीफा मौतसिम वासिक, मुत्वक्कल, मुन्तशिर, मौतमिदादी थे। अरब के खलीफा ने इमरान बिन मूसा को सिन्ध के उस इलाके पर शासक नियुक्त किया था। जिस पर अरबों का अधिकार रह गया था। सिन्ध के अरब शासक इमरान बिन मूसा को पूरी तरह पराजित करके समस्त सिन्ध गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य का अभिन्न अंग बना लिया था। केवल मंसूरा और मुलतान दो स्थान अरबों के पास सिन्ध में इसलिए रह गए थे कि अरबों ने गुर्जर प्रतिहार सम्राट के तूफानी भयंकर आक्रमणों से बचने के लिए अनमहफूज नामक गुफाए बनवाई हुई थी जिनमें छिप कर अरब अपनी जान बचाते थे। सम्राट मिहिर भोज नही चाहते थे कि अरब इन दो स्थानों पर भी सुरक्षित रहें और आगे संकट का कारण बने इसलिए उसने कई बड़े सैनिक अभियान भेज कर इमरान बिन मूसा के अनमहफूज नामक जगह को जीत कर गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य की पश्चिमी सीमाएं सिन्ध नदी से सैंकड़ों मील पश्चिम तक पंहुचा दी और इसी प्रकार भारत देश को अगली शताब्दियों तक अरबों के बर्बर, धर्मान्ध तथा अत्याचारी आक्रमणों से सुरक्षित कर दिया था। इस तरह सम्राट मिहिर भोज के राज्य की सीमाएं काबुल से रांची तक सिंध में मिल चुकी थी ।घस्सन द्वारा नियुक्त मूसा इब्न यज़ीद अल झलिद की 836AD में युद्ध में बार बार मिल रही बार बार की पराजय से मौत हो जाने पर उसका बेटा अरमान सिंध का सूबेदार बना इस से पहले अरब गुर्जरों के बारे में इतना जान चुके थे कि युद्ध मैदान में इनके पेर कांपते थे गुर्जरों के सामने आने से लेकिन नव नियुक्त ऊर्जावान सूबेदार अरमान को अभी गुर्जरों की भाले और तीरों का खट्टा स्वाद चखना बांकी था , अरमान के पूर्वजों ने गुज्जरों से हार खाने के बाद अरबो के अधीन इलाके राजा विहीन हो चुके थे उन जगहों पर स्थानीय निवासी जाट ओर मेड फिर से दबंग हो गये थे ओर अरबों की कमज़ोरी का फ़ायदा उठा कर काबू से बाहर हो गये थे। अरमान ने किक्कन के इलाक़े के जाटों पर धावा बोलकर उनको फिर से काबू में किया ओर फिर मेड जाती के 3 हज़ार लोगों को क़त्ल करके उनको काबू में क़िया। कदबील का राजा मोहम्मद इब्न ख़लील जिस ने आज़ादी की घोषणा कर दी थी को भी पकड़ कर क़त्ल किया गया ओर कदबील की सारी की सारी आबादी खुसदर तब्दील कर दी गयी। जाटों ओर मेडों को काबू में रखने के लिए उसने किक्कन के पास अल बैजा नाम का क़िला बनाया जहाँ सेना की इक टुकड़ी हमेशा तैनात रहती थी। अरमान ने सकर अल मेड नाम की मेड जाती से इक सेना भी तैयार की जिसको जाटों के दमन के काम में लगाया गया। लेकिन सिंध दरिया के पूरव में गुज्जरों के इलाक़े के जाट दरिया पार करके अरबों को तंग कर रहे थे इस परेशानी से कराह उठे अरबों जाटों से ज़ाज़िया वसूला गया ओर वसूली के बाद ज़ाज़िया देने वाले जाटों क हाथ पर मोहर लगा दी गयी। अरमान ने अब जाटों की इक सेना तैयार की ओर उसकी सहयता से सिंध दरिया के पूरव में बसने वाले मेडों पर हमला किया। मेडों ने इक झील के बीचों बीच इक कल्लरी नाम के टापू से डट कर मुकाबला किया ओर गुज्जर सेना के आने का इंतज़ार करते रहे क्योंकि अब यह इलाक़ा गुज्जरों के अधीन था। अरब सेना के नज़ारी ओर यमानी सैनिकों में आपस में झगड़ा हो गया। अरमान ने यमनीओ का साथ दिया। इक नज़ारी सैनिक ऑमर इब्न अल अज़ीज़ अल हब्बरी ने अरमान को क़त्ल कर दिया। इस वक़्त मिहिर भोज गुज्जरों का राजा था, गुज्जरों के इलाक़े में अरबों की दखल अंदाज़ी उस की बर्दाश्त की हद से बाहर थी। फ़ज़ल इब्न महान सिंध का सूबेदार बनकर आया ओर उसने कल्लरी पर आक्रमण के लिए 60 किश्तियों में सवार सैनिक भेजे जिनमेसे सभी मोत के घाट उतार दिए गए असल मे यह सैनिक टुकड़ी मेड समुदाय के लोगों की थी जिनको अरमान ने अपने अधीन कर लिया था यही लोग अरमान की तरफ से युद्ध मे शामिल थे । बहुत से मेड मार दिए गये। आख़िर 839 AD में गुज्जरों के महान राजा मिहिर भोज ने सैनिक कार्यवाही करके सिंध दरिया के पूर्वी इलाक़े में अरमान द्वारा बनाई अलोर के पास छावनी को तबाह कर दिया ओर अरब सैनिकों का क़त्ल ए आम कर दिया। बचे हुए अरब दरिया पार करके भाग गए। उन छावनियों से कुछ बच कर अनमहफूज नामक गुफाए बनवाई हुई थी जिनमें छिप कर अरब अपनी जान बचाने में सफल रहे इनके विरुद्ध एक अंतिम युद्ध हुआ जिसमें अरबों के युद्ध करने का मनोबल ही खत्म कर दिया और मिहिर भोज के साथ हुए इन 30 वर्ष के असंख्य युद्धों से होने बाली जन धन की अपार हास्य को पूरा करने के लिए अरबों ने अपना ध्यान भारत से हटा लिया था । इसी दौरान पूर्वी भारत के पाल शासक धर्मपाल ने जो की पंजाब तक आगे बढ़ चुका था ने मोके का फ़ायदा उठाकर पश्चिमी पंजाब में अरबों के इक इलाक़े यवन पर धावा बोल कर उस पर क़ब्ज़ा कर लिया। यह बात मिहिर भोज को हजम नही हुई ओर गुज्जर सेना ने कन्नौज के पास धर्मपाल की पंजाब से लौट रही सेना पर जबरदस्त हमला करके पालों को धूल चटा दी। धर्मपाल मुश्किल से जान बचा कर बंगालभाग गया।अरबों ओर गुज्जरों क बीच संघर्ष के लंबे दौर में हम देखते हैं की यह कोई छोटी-मोटी जंग नहीं थी बल्कि कई साल चलने वाला इक युद्ध था जिसमें कई जंगे हुईं जो राजस्थान से अधिक मध्य प्रदेश (उज्जैन), गुजरात(वल्लभी, नान्दोल आदि), यह युद्ध थे गुर्जर और अरब भेड़ियों के बीच जिसका सामना गुर्जर वंश के प्रत्येक महाराज ने अपनी प्रजा की सुरक्छा नारायण की तरह की थी इन युद्धों का नतीजा गुज्जरों की जीत ओर अरबों की हार में निकला ओर गुज्जर सरदार अरबों से भारत की हिफ़ाज़त करते रहे मूलतः भारत मे जो हमले हुए वो थल मार्ग से हुए थे और राष्ट्रकूट पूर्ण सुरक्छित थे उनपर उनकी प्रजा पर कोई बाहरी हमला संभव ही नही था क्यों कि उनसे पहले गुर्जर राजाओं के राज्य की सरहदें धरती से समुद्र तक सहेज कर चल रही थी गुर्जरों ने सिर्फ आने बाले दुश्मनों से अपने राज्य देश को प्रजा को बचाया था जिसके चलते गुर्जर सम्राट नारायण और प्रतिहार की उपाधि से जाने गए ।।
गुर्जर साम्राज्य की राजधानी- गुर्जर साम्राज्य की राजधानी क्रमसः दो भागों में विभक्त थी प्रथम मुख्य राजधानी ,उप राजधानी ,सांस्कृतिक राजधानी , जिनमे मुख्य राजधानी के तौर पर कन्नौज उज्जैन थी उप राजधानी के बतौर ग्वालियर ,भोजपुर ,मिहिरोली, पेहोवा ,तथा गुजरात मे थी इसके अतिरिक्त सांस्कृतिक राजधानी उज्जैन जो कि छीप्र नदी के किनारे और ओसिया थी तथा बटेस्वर थी चम्बल नदी के किनारे थ।
गुर्जर कालीन कला -गुर्जर सम्राटों के हातो बनाये गए मंदिर
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तेली का मंदिर ग्वालियर |
बटेस्वरा के 300 कुल मंदिरों का समूह जो एक खुद विश्वकर्मा के बनाये प्रतीत होते हैं जिनका निर्माण गुर्जर सम्राट मिहिर भोज ने कराया था । चोंसठ योगनी मंदिर जिसकी
नकल करके संसद भवन का निर्माण कराया गया है "शनीचरा के पहाड़ बानमोर के नजदीक गुर्जर प्रतिहार कालीन तालाब जो जर्जर अवस्था मे है तथा विष्णु की मूर्ति चोरी की जा चुकी है रथ पर विराजे विष्णु की थी प्रतिमा रिपोर्ट के अनुसार मंदिर के अधिष्ठान भाग(वेदीबंद) साबुत है। इसके तल वाले हिस्से पर मंदिर का गर्भगृह और मंडप भी मौजूद है। इस मंदिर का शिखर टूटा हुआ था। और मंदिर की मुख्य प्रतिमा रथ पर विराजे हुए विष्णु की थी। अधिष्ठान के नीचे देवी देवताओं की मूर्तियां बनी हुई थीं। जिनमें गणेश, विष्णु, ब्रह्मा, कार्तिकेय की प्रतिमाएं ललिताशन में थीं, जबकि मंदिर का दक्षिण की तरफ वाला हिस्सा पूरी तरह से ढह चुका था।
बनी हुई थीं। जिनमें गणेश, विष्णु, ब्रह्मा, कार्तिकेय की प्रतिमाएं ललिताशन में थीं, जबकि मंदिर का दक्षिण की तरफ वाला हिस्सा पूरी तरह से ढह चुका था ,मंदिर के पास ही पुरातत्वविदों को एक कुंड भी मिला था। जो प्रतिहार शैली में बना हुआ था। कच्छपघात और प्रतिहार वास्तु शैली के कुछ और मंदिर भी इस कुंड के आसपास होने पाए गए थे, लेकिन अब इनके निशान और भी मिट गए हैं। ऐसे में अगर मंदिर के संरक्षण का काम शुरू नहीं हुआ तो मंदिर का बचा खुचा हिस्सा भी नष्ट हो जाएगा। क्योंकि मंदिर के ज्यादातर भग्नावशेष लगातार यहां से गायब होते जा रहे हैं और स्थानीय लोगों को भी इनके महत्व का पता नहीं है।शनिश्चरा के जंगलों में मिला विष्णु मंदिर 10वीं सदी का है। इस मंदिर का अध्ययन कर 2012 में ही रिपोर्ट आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को भेज दी थी। मंदिर के जीर्णोद्घार आदि का काम उन्हें ही करवाना होता है।(7)" इसके अतिरिक्त गोहद चोक ग्वालियर इटवाह हाईवे के पास खनन एरिया में गुर्जर कालीन शिव मंदिर जो पत्थर की खदानों में रोज होते बारूद के विस्फोट को सहता हुआ भी अटल खड़ा है लेकिन पुरातत्व विभाग के कान पर जूं तक नही रेंगती गुर्जर महाराजाओं के अवसेस संभालने के लिए आगे चल कर फूप अटेर हाईवे मार्ग पर दुल्हागंन में इस्थित बौरेश्वर शिव मंदिर काफी अच्छी हालात में है इसके अतिरिक्त इस खबर का जिक्र वीरेन्द्र पाण्डेय, जिला पुरातत्व अधिकारी भिण्ड जिन्होंने पत्रिका अखबार के माध्यम से जग जाहिर कराया था जिसका लेखन कार्य गौरव सेन ने किया था ।मडखेरा का गुर्जर प्रतिहार कालीन सूर्य मन्दिर जो बुंदेलखंड के टीकमगढ जिला मुख्यालय से 20km. दूर अपने आँचल मे गुर्जर प्रतिहार कला का मन्दिर आज भारत के गिने चुने सूर्य मन्दिरो मे अपनी स्थिती काफी मजबूती से कायम किये है !प्रतिहार कालीन ऊमरी का सूर्य मन्दिर मध्य प्रदेश के जिला टीकमगढ के ऊमरी मे इस्थित है गुर्जर प्रतिहार कालीन विध्यमान प्राचीनकाल का सूर्य मन्दिर जिसका निर्माण सातवी शताब्दी के अन्तिम दशक तथा आठवी शताब्दी का निर्माण काल बताया जा रहा हो इस मन्दिर मे गुर्जर प्रतिहार राजाऔं का एक अभिलेख भी मिला हे लेकिन पत्थर के छरण की बजह से ऊसका पढा जाना असम्भव हे इस मन्दिर के गर्भ ग्रह मे सप्त अश्व युक्त रथ पर आसीन सूर्य नारायण भगवान की खडगासन मूर्ति बहुत ही सुन्दर तथा मनोहारी हैं ।आपेश्वर महादेव मंदिर रामसीन गाँव का इस मंदिर का पुजारी कस्च्याप गोत्रीय रावल ब्राह्मण है , गुजरात मे गुर्जर कालीन साबरकांठा में मौजूद है इसके अतिरिक्त लाखेस्वर मंदिर उत्तराखंड के अल्मोड़ा के 24 शिव मंदिर तथा कुल 240 मंदिर जिनमे 120 सबूत हैं आज भी हिमाचल के कुल्लू ,मध्य भारत के खुजराओ तेली का मंदिर चतुर्भुज मंदिर , देवगढ़ मंदिर,चंदेरी , दधिमाता मंदिर , समाधेस्वर मंदिर चित्तोड़ गढ़ ,आभानेरी की बाबड़ी , चंदेरी की बाबड़ी बड़ी छोटी बाबड़ी ,महरौली, ओसिया आदि काफी प्रसिद्ध ेेऐतिहआशिक स्थानों को गुर्जर प्रतिहारों ने खून पसीने से बनाया था ,
गुर्जर प्रतिहार वंश -
1-नागभट्ट (730-760 ईसवी)
2-ककुस्थ और देवशक्ति (760-778इस्वी)
3-वत्सराज (778-800इस्वी ) पत्नी सुंदरी देवी
4-नागभट्ट 2 (800-833इस्वी )
5-रामभद्र (833-835इस्वी ) पत्नी -महारानी अप्पा देवी
6- सम्राट मिहिर भोज(835-889 इस्वी),पत्नी -महारानी चंद्रभट्टारीक देवी
7-सम्राट महेन्द्रपाल प्रथम(885-910इस्वी)
8- सम्राट महिपाल (910-930इस्वी)
9-भोज द्वतीय (930-931)
10-विनायकपाल (931-944इस्वी)
11-महेन्द्रपाल द्वतीय (944-947इस्वी)
12-देवपाल (947-955इस्वी)
13-विजयपाल(955-985इस्वी)
14-राज्यपाल देव गुर्जर(985-1019)
15-त्रिलोचलपाल गुर्जर(1019-1030इस्वी)
16-यशपाल गुर्जर (1030-1040इस्वी ), कुल 300 साल आर्यवृत पर गुर्जर वंश के इस परिवार ने राज किया था
गुर्जर राजवंश-
भड़ोच के (छाबड़ा/चाप/चपराना)
दद्दा1(580इस्वी),जयभट्ट1(605इस्वी),
दद्दा2 (प्रसंतराग-633 इस्वी),
दद्दा 3-(655इस्वी),जयभट्ट2-(680इस्वी),
दद्दा4-(706-734इस्वी), जयभट्ट3,दद्दा5-बाहुसहाय,
जयभट्ट4 -
भड़ोच के गुर्जरो ने हर्ष को कड़ी चुनोतियाँ देकर अकन राज्य स्थापित किया था इससे पहले दत्त गुर्जर नाम का गुर्जर वंशी हूण के तोरमाण का कर संग्रह कर्ता नियुक्त किया गया था जिसका नाम 499इस्वी की तारीख में आता है( 455-666इस्वी) तक हूण ने राज किया इनको अधिकतर इतिहासकार गुर्जर कहते हैं ,इनसे पहले मौखरी/मोरी वंश गुर्जरों का था आज भी मोरी गोत्र मालवा और चित्तौड़गढ़ के आसपास गुर्जरों में पाया जाता है , कुशाण वंश (65ईसा पूर्व-375ईस्वी)तक कुशाण गुर्जर वंशियों ने भारत के अखंड स्वरूप को विश्व पटल पर लेकर आये जिनसे कुसान ,कसाना,दोराता,अधाना, नेकाड़ी,चांदना, गोरसी,कपासिया आदि दर्जनों गोत्र निकले जिनका महान राजा कनिष्क जिन होने 78 इस्वी में शक संवत की स्थापना की थी , नर्सिंगढ के खींची गुर्जर ,बगड़ावत वंशी चौहान, चेंची वंशी चौहान अजमेर पुष्कर पर राज किया था ,1100इस्वी के बाद गुर्जरों के पास कम ही राजवंश रह गए थे लेकिन फ़ीर भी गोविंदगढ़ ,
घुरैया बसई का घुरैया राजवंश-
महाराज श्री श्योपत सिंह घुरैया (1713-1750इस्वी)
महाराज राम पाल घुरैया (1750-1820इस्वी)
राजा राम घुरैया (1820इस्वी )
स्वर्गीय महाराज मुंशी सिंह घुरैया
वर्तमान इंजी रविन्द्र सिंह घुरैया तथा अन्य प्रसिद्ध घुरैया व्यक्तित्व एस पी यशवंत सिंह घुरैया , स्वामी हरिगिरि महाराज , श्री उत्तम सिंह घुरैया सरसपुरा , श्री नवल सिंह घुरैया ,सरनाम सिंह डीएसपी राजेन्द्र सिंह, डीएसपी भूपेंद्र सिंह आदि हैं ।राजोरगढ़ मंथन देव गुर्जर , फरीदाबाद अर्थात भड़ानक देश के भड़ाना भड़ाना राज्य की ज्ञात वंशावली में,
कुमार पाल प्रथम (12वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध), महाराजाधिराज अजयपाल (1150ई0)
हरिपाल (1170 ई0),
सोहन पाल (1196 ई0),
कुमार पाल द्वितीय थे।
दिल्ली के तंवर गुर्जर महाराज अनंगपाल तंवर वंश ,जयपाल खटाना सिंध , सबलगढ़ के बैसला(1700इस्वी) , शिवपुरी गुना के बीहड़ों में डांडे की खिरक इस्थित गुर्जर शेरों की गड़ी आज भी मौजूद है (1700इस्वी) घुरैया गोत्र के वंश, लंधौरा रियासत, समथर रियासत और झबरेडा रियासत लंधौरा रियासत के वर्तमान महाराजा श्री कुँवर प्रणव सिंह जी परमार हैं (पँवार वंश-"1700-1947इस्वी), समथर रियासत के वर्तमान महाराजा श्री रणजीत सिंह जी जूदेव (खटाणा) (1730-1947इस्वी)
1- श्री नौने शाह (1735-1740)
2-श्री मदन सिंह जूदेव(1740-1745)
3-श्री राजधर विश्हना सिंह(1745-1790)
4- श्री राजा देवी सिंह जूदेव (1791-1800)
5-श्री राजा रणजीत सिंह (प्रथम)(1800-1815)
6- श्री राजा रणजीत सिंह (द्वितीय) (1815-1827)
7- श्री महाराजा हिन्दू पति जूदेव (1827-1858)
8-श्री महाराजा चतुर सिंह जूदेव(1865-1896)
9-श्री महाराजा वीर सिंह जूदेव (1896-1935)
10- श्री महाराजा राधाचरण सिंह जूदेव (1935-1947)
11- श्री महाराजा रणजीत सिंह जूदेव (तृतीय ) (1947- अब तक,झबरेडा रियासत के यशवीर व कुलवीर सिंह इन तीनो गुर्जर प्रतिहार रियासतों के महल और किले बहुत ही खूबसूरत है
मिहिर भोज सम्राट का कुशल मंत्रिमंडल-
1-महामंत्री
2-महासंधिविग्रहक
3-महासेनापति
4-महादण्डनायक
5-महाप्रतिहार
6-अमात्य
7-महाप्रधर्माध्यक्च
8-महा लक्चपरलिक
9-महासामंत
इन सभी नवरत्न पदों से मिहिर भोज का दरबार सजता था ।
व्यावसायिक संघ -गुर्जर सम्राट मिहिर भोज के समय संघ का भी उल्लेख आता है पेहोवा अभिलेख के अनुसार घोड़ों के व्योपारियों का एक संघ भी बना था , सियादोनी अभिलेख के अनुसार तमोली, तेली, कलार, तथा ग्वालियर अभिलेख से मालकारों का जिक्र आता है अन्य अभिलेख से कुंभकारों का भी जिक्र आता है ये सभी संघ अपनी कमाई का कुछ भाग राज्य के विकाश के लिए राजकोश में देते थे जो आपदा के समय आम जनता के ही काम आता था ।
भूमि नापने की इकाई -गुर्जर राजवंश में भूमि नापने की 7 इकाइयां थी कुलयवाप,द्रोणवाप, पाठक,हल, हस्त, पादावर्त, नल उपयोग में थी
संदर्व-
1- एपिग्राफिया इण्डिका भाग 1 पेज 175,
2-कल्हड़क्रत राजतरंगिणी 8/2518,
3-एपिग्राफिया इण्डिका भाग 1 पेज 159,
4-एपिग्राफिया इण्डिका भाग 1 पेज 184-190,
5-एपिग्राफिया इण्डिका भाग 1 पेज 162-179,
6-एपिग्राफिया इण्डिका भाग 5 पेज 211,
7- 1 सितम्बर 2015 दैनिक जागरण ,एसआर वर्मा, डिप्टी डायरेक्टर पुरातत्व संग्रहालय एवं अभिलेखागार ग्वालियर।।