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Sunday, 18 November 2018

गुर्जर सम्राट मिहिर भोज

सदी के गुमनाम महानायक मिहिर भोज !

सदी के गुमनाम महानायक मिहिर भोज !
मिहिर भोज ,महाराष्ट्र गुर्जर समाज
लेखिका -ज्योति नरेंद्र पाटिल समाजसेवी
एक हज़ार साल आर्यव्रत पर राज करने बाले गुर्जरों में एक से बढ़कर एक राजा महाराजा क्रांतिकारी हुए हैं , जिन्होंने खून पसीने से देश दुनिया की भूमि को रहने योग्य बनाया था जिसमे बीहड़ उबड़ खाबड़ जमीनों को उपयोगी बनाने के लिए गुर्जरों ने पूरे एक हज़ार साल के लगभग राज किया जिनमें हर एक गोत्र के गुर्जरों का अत्यधिक योगदान रहा है शक कुसान हुण मोरी गुर्जर प्रतिहार चालुक्य भड़ाना खटाना घुरैया और बैसला आदि ने राज किया है जिन्होंने भारत को ज्ञान तथा शिक्षा में सात वे आसमान पर पहुँचा दिया था ,गुर्जरों के हर एक राजवंश में शिक्षा को काफी जोर दिया तथा अंधकार को दूर करने में आडम्बर को मिटाने ने के लिए काफी हद तक सफलता शक और कुशाण को हासिल भी रही थी गुर्जर सम्राट मिहिर भोज का नाम भारत ही नही आर्यवृत के महान सम्मानों में गिना जाता है इसके अतिरिक्त प्रभास ,परमेश्वर, श्रीमदादिवरह उपाधियां से गुर्जर सम्राट की सोभा भारत के चक्रबर्ती सम्राट अशोक महान , कनिष्क महान गुर्जर के बाद गुर्जर  सम्राट मिहिर भोज का नाम आता है ,गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना नागभट्ट नामक एक सामन्त ने 725 ई. में की थी। उसने राम के भाई लक्ष्मण को अपना पूर्वज बताते हुए अपने वंश को सूर्यवंश की शाखा सिद्ध किया। अधिकतर गुर्जर सूर्यवंश का होना सिद्द करते है तथा गुर्जरो के शिलालेखो पर अंकित सूर्यदेव की कलाकृर्तिया भी इनके सूर्यवंशी होने की पुष्टि करती है।आज भी राजस्थान में गुर्जर सम्मान से मिहिर कहे जाते हैं, जिसका अर्थ सूर्य होता है गुर्जर सम्राट मिहिर भोज से अरब , पाल ,कश्मीर के वर्मन वंशी आदि थर-थर कांपते थे !
मिहिर भोज के पहले राज्य स्थिति-
वत्सराज का उत्तराधिकारी नागभट्ट द्वितीय (800-834) भी अपने कुल का एक प्रतापी सम्राट् था। नागभट्ट को अपने सैन्य-जीवन के प्रारम्भ में कई सफलतायें प्राप्त हुई। नागभट्ट-द्वितीय को इस बात के लिए श्रेय प्रदान किया जाता है कि उसने उत्तर में सिन्ध से लेकर दक्षिण में आन्ध्र और पश्चिम में अनर्त (काठियावाड़ में एक स्थान) से लेकर पूर्व में बंगाल की सीमाओं तक अपने राज्य का विस्तार किया। यद्यपि राष्ट्रकूट वंश के राजा गोविन्द तृतीय ने नागभट्ट-द्वितीय को पराजित कर दिया तथापि कन्नौज पर प्रतिहार वंश का अधिकार बना रहा। नागभट्ट-द्वितीय को गोविन्द-तृतीय द्वारा पराजय सहन करने से कुछ हानि अवश्य उठानी पडी किन्तु कन्नौज को उसने अपने हाथ से नहीं जाने दिया और इसे अपनी राजधानी बनाया। नागभट्ट-द्वितीय का उत्तराधिकारी रामभद्र था (834-840), जिसके शासन-काल में कोई महत्त्वपूर्ण घटना घटित नहीं हुई।
रामभद्र के समय गुर्जर राजाओं से गुजरात,मुंगेर , भोजपुर ,पंजाब,आदि राज्य लगभग लगभग नाम मात्र के अधीन थे जिसमें विद्रोह के स्वर गूंज रहे थे

मिहिर भोज का साम्राज्य-
गुर्जर साम्राज्य 

मिहिर भोज के समय गुर्जर वंश का चौमुखी विकाश हुआ था जिसमे गुर्जर सम्राट मिहिर भोज के राज्य शीमा मुल्तान ,सिंध से लेकर बंगाल तक जा लगी और पंजाब और कश्मीर की सरहद से लेके महाराष्ट्र तक जा चुकी थी इसके अलावा मुंगेर, आसाम , उड़ीसा,उत्तराखण्ड आदि इनके साम्राज्य का हिस्सा बन गए थे ।

मिहिर भोज की उपाधियां-गुर्जर सम्राट मिहिर भोज के मुख्य मुख्य अभिलेखों में ग्वालियर, पेहोवा, दौलतपुर, अभिलेख हैं जिनमे मिहिर भोज के नाम के साथ मिहिर,भोज देव, प्रभाश, आदिवराह, परमेश्वर, आदि महान महान उपाधियों से बिभुसित किया गया था ।

मिहिर भोज का पारिवारिक विवरण-

1-नागभट्ट (730-760 ईसवी),
2-ककुस्थ और देवशक्ति (760-778इस्वी) ,
3-वत्सराज (778-800इस्वी ) ,
4-नागभट्ट 2 (800-833इस्वी ) ,
5-रामभद्र (833-835इस्वी ) ,
6- सम्राट मिहिर भोज(835-889 इस्वी)
7-सम्राट महेन्द्रपाल प्रथम(885-910इस्वी) ,
8- सम्राट महिपाल (910-930इस्वी),
9-भोज द्वतीय (930-931),
10-विनायकपाल (931-944इस्वी),
11-महेन्द्रपाल द्वतीय (944-947ई.),
12-देवपाल (947-955इस्वी),
13-विजयपाल(955-985इस्वी),
14-राज्यपाल देव गुर्जर(985-1019),
15-त्रिलोचलपाल गुर्जर(1019-1030इस्वी),
16-यशपाल गुर्जर (1030-1040इस्वी ),  कुल 300 साल आर्यवृत पर गुर्जर वंश के इस परिवार ने राज किया था

मिहिर भोज के सामन्त-

1-चाटसु के गुहिल,
2-शाकंभरी के चाहमान ,
3-मारवाड़ के प्रतिहार ,
4-प्रताप गढ़ के चौहमान ,
5-सौराष्ट्र के चालुक्य ,
6-बुंदेलखंड के चंदेल गुर्जर ,

मिहिर भोज का शासन काल-भोज ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया। व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा। मिहिरभोज ने गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य को धन, वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। अपने उत्कर्ष काल में इन्हे गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की उपाधि मिली थी। अनेक काव्यों एवं इतिहास में उसे गुर्जर सम्राट भोज, भोजराज, वाराहवतार, परम भट्टारक, महाराजाधिराज आदि विशेषणों से वर्णित किया गया है।विश्व की सुगठित और विशालतम सेना भोज की थी-इसमें 8,00,000 से  ज्यादा पैदल करीब 90,000 घुडसवार,, हजारों हाथी और हजारों रथ थे।915 ईस्वीं में भारत आए बगदाद के इतिहासकार अल- मसूदी ने अपनी किताब मरूजुल महान मेें भी मिहिर भोज की 36 लाख सेनिको की पराक्रमी सेना के बारे में लिखा है। इनकी राजशाही का निशान “वराह” था और मुस्लिम आक्रमणकारियों के मन में इतनी भय थी कि वे वराह यानि सूअर से नफरत करते थे। मिहिर भोज की सेना में सभी वर्ग एवं जातियों के लोगो ने राष्ट्र की रक्षा के लिए हथियार उठाये और इस्लामिक आक्रान्ताओं से लड़ाईयाँ लड़ी।मिहिरभोज के राज्य में सोना और चांदी सड़कों पर विखरा था-किन्तु चोरी-डकैती का भय किसी को नहीं था। जरा हर्षवर्धन के राज्यकाल से तुलना करिए। हर्षवर्धन के राज्य में लोग घरों में ताले नहीं लगाते थे,पर मिहिर भोज के राज्य में खुली जगहों में भी चोरी की आशंका नहीं रहती थी। मिहिर भोज की सेना में हर जाति वर्ग का इंसान सेना में लड़ने जाता था जिसमे तमोली, तेली, माला बुनकर, लुहार, आदि सभी भाग लेते थे भोज के राज कॉज में अरब यात्री ने भोज के राज्य का वर्णन में लिखता है कि "इस राजा के राज्य में सुकून से जीते थे और अपने घरों में ताला नही लगाते थे" मिहिर भोज ने अपनी सेना को पहले से और बेहत्तर बनाने के लिए सेना की टुकड़ियों को अलग अलग दिशाओं में राष्ट्रकूट से लड़ने के लिए चुंगी मांडू पुर बना दी थी , पाल से लड़ने के लिए मुंगेर सरहद पर, कश्मीर के वर्तमान वंसज से लड़ने के लिए पेहोवा में बना दी थी , अरब के तरफ से होने बाले हमलों की मिहिर भोज अपनी अगुवाई में खुद अंजाम देते थे इनके बारे में कहा गया था कि ये "अरब यात्री सुलेमान और मसूदी ने अपने यात्रा विवरण में लिखा है ’जिनका नाम बराह (मिहिर भोज) है। उसके राज्य में चोर डाकू का भय कतई नहीं है। उसकी राजधानी कन्नौज भारत का प्रमुख नगर है जिसमें 7 किले और दस हजार मंदिर है। आदि बराह का (विष्णु) का अवतार माना जाता है। यह इसलाम धर्म और अरबों का सबसे बड़ा शत्रु है"

अरबों के साथ संघर्ष -मिहिर भोज के राजतिलक के बाद अरबों के ऊपर अंधकार के काले बादल छगये थे जिसके चलते राज्य के विरोध अरब आक्रमण कारी अरमान ने दुगनी फ़ौज का उपयोग किया 839 इस्वी में और सिंध में बुरी तरह उसको पराजित होकर भागना पड़ा  अरब के खलीफा मौतसिम वासिक, मुत्वक्कल, मुन्तशिर, मौतमिदादी थे। अरब के खलीफा ने इमरान बिन मूसा को सिन्ध के उस इलाके पर शासक नियुक्त किया था। जिस पर अरबों का अधिकार रह गया था लेकिन इनकी मोत के बाद अरमान गद्दी पर आया और गुर्जर के हातो पराजित होकर सिंध से बेदखल होकर भाग गया मिहिर भोज ने इसी प्रकार 840 से 885 तक इनको 20 बार युद्ध के मैदान में बुरी तरह पराजित कर के अपने राज्य तथा राज्य के लोगों  को बचाया नारायण का अवतार की तरह ।

पाल वांशियों के साथ संघर्ष - पाल वंश में धर्म पाल ,नारायण पाल ,देबपाल में साथ मिहिर भोज के काफी युद्ध हुए देबपाल तथा नारायण पाल की सत्ता पूर्ण खत्म करके बंगाल उड़ीसा को अपने मे मिला लिया था ।

राष्ट्रकूटों के साथ संघर्ष- अमोघवर्ष ,तथा उसके पुत्र के साथ निरंतर युद्ध उज्जैन तथा कन्नौज के लिए किए जा रहे थे कृष्ण 2 को युद्ध से हरा कन्नौज से बेदखल कर दिया था इसके इससे पहले नर्मदा तट पर हुए मिहिर भोज और अमोघवर्ष के साथ हुए युद्ध अनिर्णायक रहे थे ।


मिहिर भोज के सिक्के- 
श्रीमद आदिवराह 

मिहिर भोज के कन्नौज विजय के बाद राजतिलक में निसानी के तौर पर श्रीमद आदिवराह नामक 56 ग्रेन के सिक्के को चलाया था जो उस जमाने का उत्तम टकसाल थी जिसका उपयोग सैनिक वेतन ,बाजार व्यवस्ता आदि के लिए किया जाता था 


मिहिर भोज की कला -
तेली का मंदिर ग्वालियर
मिहिर भोज ने विंष्णु ,शिव,के मंदिर सबसे ज्यादा बन बाए थे जिनमें ,बटेस्वर मुरैना,तेलीका मन्दिर, सास बहू का मंदिर ,
चतुर्भुज मंदिर, जयपुर दोसा की बाबड़ी, आदि मंदिरों का निर्माण कराया था ।मिहिर भोज ने भारत भूमि के उत्तम स्थान आर्यवृत पर लगभग 55साल राज किया तथा गुर्जर प्रतिहार के इस वंश ने भारत भूमि का भोग 300 साल तक किया जिसमें भारत को सोने की चिड़िया बना दिया गया था ।
मिहिर भोज अपने दरबार मे एक एक श्लोक पर लाख लाख मुद्रा भेंट करता था राज्य की विशालता आप नाप सकते हैं कि मिहिर भोज का राज्य किस शिखर पर था आज उस महान सम्राट की जयंती तथा अवतरण दिवश है जिसपे कम से कम हम उनके आदर्शों पर चल कर हम भी जीवन की कठिनता को पार करके अपना कर्तिमान कायम कर सकते हैं जिसके लिए हिम्मत ,संयम आदि की जरूरत होती है ।
हर हर भोज
घर घर भोज
जय कनिष्क जय मिहिरगुल जय भोज ।

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