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Saturday, 17 November 2018

गूजरी भाषा का इतिहाश

गुजरी भाषा व्याखया -
लेखक -इंजी. राम प्रताप सिंह
कुषाणोँ ने बैक्ट्रीया पर अधिकार किया उसे समय ऊधर ग्रीक सभ्यता तथा लिपी ज्यादा मात्रा मे उपस्थित थी क्योंकि की ग्रीकों के अधीन यह जगह काफी समय सै थी जब कुषाणोँ ने अधिकार किया तो इनकी भाषा की जगह पर आर्य भाषा को लाये जबकी प्रारम्भिक समय मे ईधर खरोष्टी भाषा ही ग्रीक  लिपी मै चलती थी ज्यादा जिसके कुछ समय बाद यह बख्त्री भाषा का उपयोग होने लगा जंहा तक है रोबोटक अभिलेक के अनुसार इनके नामो के वर्णन मे "ओ" को ज्यादा महत्वदिया गया है जिसमे हम इस बात को देखते हैं की यह लोग बोलते कैसे थे उस समय Ozeno (Ujjain), Kozambo (Kausambi), Zagedo (Saketa), Palabotro (Pataliputra) and Ziri-Tambo (Janjgir(ship)-Champa). तथा कनिंघम के अनुसार जिस सिक्के पर कोर्स लिखा है अगर उसे गोर्स (गोर्सी) पढना चाहिये तो kus(a^-)na तो k=G, Gus(a^-)NA इसी क्रम मै आगे इनके सिक्कों पर तथा बी.ऐन.मुख़र्जी के अनुसारKomaro (Kumara) and called Maaseno (Mahasena) and called Bizago (Visakha), Narasao और Miro (Mihara). आदि शब्द इनके सिक्कों पर मिलते हैं जिनके अनुसार वासुदेव को वाजुदेव पढना चाहिये तथा स/श की जगह पर ये लोग "ज" का उपयोग करते थे अब हम कुसान/कुषान पर ध्यान देते हैं "क" को जब कनिंघम ने "ग" बताया है तब आगे "गुजान"(Gujan) जो की गूजर शब्द कि ही अप्रभंस है Komaro (Kumara) and called Maaseno (Mahasena) and called Bizago (Visakha), Narasao और Miro (Mihara). आदि शब्द इनके सिक्कों पर मिलते हैं जिनके अनुसार वासुदेव को वाजुदेव पढना चाहिये तथा स/श की जगह पर ये लोग "ज" का उपयोग करते थे अब हम कुसान/कुषान पर ध्यान देते हैं "क" को जब कनिंघम ने "ग" बताया है तब आगे "गुजान"(Gujan) जो की गूजर शब्द कि ही अप्रभंस है।जी. ए. ग्रीयरसन ने लिंगविस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया, खंड IX  भाग IV में गूजरी भाषा का का विस्तृत वर्णन किया हैं| गूजरों की भाषा गूजरी के बारे मे लिखने बाले सर डेन्जिल इबटसन ने कास्ट एन्ड ट्राइब्स आफ दी पिपुल (पंजाब कास्टस) 1883’’ इनकी भाषा पंजाबी तथा पश्तो सै बिल्कुल भिन्न हिन्दी है जो नरम जुबानी है "इसी भाषा को पूंछ ऐवटाबाद मे बोली जाती है जिसको नरम भाषा गूजरी कहते हैं यही भाषा अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान के सीमा प्रान्त इलाकों मे बहुतायात मे बोली जाती है यह क्षेत्र गुर्जरो के ही अधीन रहा है चाहे वो कसाणा /कुषाण हों या उनके वशंज खटाना या प्रतिहार हों लेकिन इतिहासकारों के अनुसार हूंणों के आगमन के समय इस भाषा का चलन कहा गया है जबकी इसका सम्बन्ध तो बख्त्री सै मिलते हैं | जाहीर  सी बात हे की कुसन वंश के बाद भारत में किसी भी  नयी जाती का आगमन नहीं हुआ हे जिस ने खुद की कोई संस्कृति का विकाश किया हो लेकिन वो सिरफ कुसन वंश ने किया था  जिस का जीता जगता सबूत उनकी भाषा तथा उनके अभिलेख मूर्तिकला आदि भारत में ज़िंदा हैं जिस से इस  का पता लगता हे की यह राजवंश  अपने समय में तररक्कि के किस पथ पे गमन कर रहा था लेकिन गुजरी भाषा के जो प्रमाड कुषाणों के समय में मिलते हैं वो किसी भी समय में नहीं मिलते हैं कुसनो के बाद सबसे बड़ा माइग्रेशन हूणों  का हुआ जिन की कोई भासा नहीं थी अगर हूडों की कोई भाषा होती तो माना जा सकता था की कुसन काल की भासा का इनके साथ कुछ मिलावट होसकती थी मगर ऐसा नहीं हुआ आज भी हम देखें तो कुसन और हूँड़ों के राज करने की जो रियासतें थीं उनमे मूलरूप से गुजरी भाषा का ही चलना हे उत्तरप्रदेश के गुर्जर बहुल एरिया में आज  भी राम राम को रोम रोम बोलै जाता हे,ओ को कॉमन कर के बोलै जाता हे जब आज कुषाण राजवंश को ख़त्म हुए    २००० वर्ष हो चुके हैं लेकिन हमारे लोगों की आज भी वोही भासा हे |  वैसे ही गूजरी बोली  में राम को रोम, पानी को पोनी, गाम को गोम, गया को गयो आदि बोला जाता हैं|इसी  भासा में कुसानो के सिक्कों   उन्हें बाख्त्री में कोशानो लिखा हैं और वर्तमान में गूजरी में  भी ओ को अतिरिक्त जोड़ के  कोसानो बोला जाता हौं| अतः कुषाणों द्वारा प्रयुक्त बाख्त्री भाषा और आधुनिक गूजरी भाषा की समानता भी कुषाणों और गूजरों की एकता को प्रमाणित करती हैं| ​
गुर्जरों की हमेशा ही अपनी विशिष्ट भाषा रही हैं| गूजरी भाषा के अस्तित्व के प्रमाण सातवी शताब्दी से प्राप्त होने लगते हैं| सातवी शताब्दी में राजस्थान को गुर्जर देश कहते थे, जहाँ गुर्जर अपनी राजधानी भीनमाल से यहाँ शासन करते थे| गुर्जर देश के लोगो की अपनी गुर्जरी भाषा और विशिष्ट संस्कृति थी| इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि आधुनिक गुजराती और राजस्थानी का विकास इसी गुर्जरी अपभ्रंश से हुआ हैं| वर्तमान में जम्मू और काश्मीर के गुर्जरों में यह भाषा शुद्ध रूप में बोली जाती हैं|  जी. ए. ग्रीयरसन ने लिंगविस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया, खंड IX  भाग IV में गूजरी भाषा का का विस्तृत वर्णन किया हैं| इतिहासकारों के अनुसार कुषाण यू ची कबीलो में से एक थे, जिनकी भाषा तोखारी थी| तोखारी भारोपीय समूह की केंटूम वर्ग की भाषा थी| किन्तु बक्ट्रिया में बसने के बाद इन्होने मध्य इरानी समूह की एक भाषा को अपना लिया| इतिहासकारों ने इस भाषा को बाख्त्री भाषा कहा हैं| कुषाणों द्वारा बोले जाने वाली बाख्त्री भाषा और गुर्जरों की गूजरी बोली में खास समानता हैं| कुषाणों द्वारा बाख्त्री भाषा का प्रयोग कनिष्क के रबाटक और अन्य अभिलेखों में किया गया हैं| कुषाणों के सिक्को पर केवल बाख्त्री भाषा का यूनानी लिपि में प्रयोग किया गया हैं| कुषाणों द्वारा प्रयुक्त बाख्त्री भाषा में गूजरी बोली की तरह अधिकांश शब्दों में विशेषकर उनके अंत में ओ का उच्चारण होता हैं| जैसे बाख्त्री में उमा को ओमो, कुमार को कोमारो ओर मिहिर को मीरो लिखा गया हैं, वैसे ही गूजरी बोली  में राम को रोम, पानी को पोनी, गाम को गोम, गया को गयो आदि बोला जाता हैं| इसीलिए कुषाणों के सिक्को पर उन्हें बाख्त्री में कोशानो लिखा हैं और वर्तमान में गूजरी में कोसानो बोला जाता हौं| अतः कुषाणों द्वारा प्रयुक्त बाख्त्री भाषा और आधुनिक गूजरी भाषा की समानता भी कुषाणों और गूजरों की एकता को प्रमाणित करती हैं| हालाकि बाख्त्री और गूजरी की समानता पर और अधिक शोध कार्य किये जाने की आवशकता हैं, जो कुषाण-गूजर संबंधो पर और अधिक प्रकाश डाल सकता हैं|
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