कंम्बोज रक्त कुल संबंध।
लेखक-इंजी राम प्रताप सिंह
कंबोज उत्तरापथ के गांधार के निकट स्थित प्राचीन भारतीय जनपद था जिसकी ठीक-ठाक स्थिति दक्षिण पश्चिम के पुँछ के इलाके के अंतर्गत मानी जा सकती है। प्राचीन संस्कृत एवं पाली साहित्य में कंबोज और गांधार का नाम प्राय: साथ-साथ आता है। जिस प्रकार गांधार के उत्कृष्ट ऊन का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है (१,१२६) उसी प्रकार कंबोज के कंबलों का उल्लेख यास्क के निरुक्त में हुआ है (२, २)। वास्तव में यास्क ने 'कंबोज' शब्द की व्युत्पत्ति ही 'सुंदर कंबलों का उपभोग करनेवाले' या विकल्प में सुंदर भोजन करनेवाले लोग-इस प्रकार की है। गांधार और कंबोज इन दोनों जनपदों के अभिन्न संबंध की परंपरा से ही इनका सान्निध्य सिद्ध हुआ है। गांधार अफगानिस्तान (कंदहार) का संवर्ती प्रदेश था और इसी के पड़ोस में पूर्व की ओर कंबोज की स्थिति थी। कंबोज प्राचीन भारत के १६ महाजनपदों में से एक था। इसका उल्लेख पाणिनी के अष्टाध्यायी में १५ शक्तिशाली जनपदों में से एक के रूप में भी मिलता है। बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय , महावस्तु मे १६ महाजनपदों में भी कम्बोज का कई बार उल्लेख हुआ है - ये गांधारों के समीपवर्ती थे। इनमें कभी निकट संबंध भी रहा होगा, क्योंकि अनेक स्थानों पर गांधार और कांबोज का नाम साथ साथ आता है। इसका क्षेत्र आधुनुक उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मिलता है। राजपुर, द्वारका तथा Kapishi[1] इनके प्रमुख नगर थे। इसका उल्लेख इरानी प्राचीन लेखों में भी मिलता है जिसमें इसे राजा कम्बीजेस के प्रदेश से जोड़ा जाता है।
प्राचीन वैदिक साहित्य में कंबोज देश या यहाँ के निवासी कांबोजों के विषय में कई उल्लेख हैं जिनसे ज्ञात होता है कि कंबोज देश का विस्तार उत्तर में
कश्मीर से हिंदूकुश तक था। वंश ब्राह्मण में कंबोज के औपमन्यव नामक आचार्य का उल्लेख है।
शतपथ ब्राह्मण के एक स्थल से ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तरी लोगों अर्थात उत्तरी कुरुओं की तथा कुरु-पांचालों की बोली समान और शुद्ध मानी जाती थी।
वाल्मीकि- रामायण में कंबोज, वाल्हीक और वनायु देशों को श्रेष्ठ घोड़ों के लिये उत्तम देश बताया है, जो इस प्रकार है:
“ ' कांबोज विषये जातैर्बाल्हीकैश्च हयोत्तमै: वनायुजैर्नदीजैश्च पूर्णाहरिहयोत्तमै: [3] „
महाभारत के अनुसार अर्जुन ने अपनी उत्तर दिशा की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में दर्दरों या दर्दिस्तान के निवासियों के साथ ही कांबोजों को भी परास्त किया था-
'गृहीत्वा तु बलं सारं फाल्गुन: पांडुनन्दन: दरदान् सह काम्बोजैरजयत् पाकशासनि:'
महाभारत और राजतरंगिणी में कंबोज की स्थिति उत्तरापथ में बताई गई है।महाभारत में कहा गया है कि कर्ण ने राजपुर पहुंचकर कांबोजों को जीता, जिससे राजपुर कंबोज का एक नगर सिद्ध होता है- 'कर्ण राजपुरं गत्वा काम्बोजानिर्जितास्त्वया'। कालिदास ने रघुवंश में रघु के द्वारा कांबोजों की पराजय का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है कि :“ काम्बोजा: समरे सोढुं तस्य वीर्यमनीश्वरा:, गजालान् परिक्लिष्टैरक्षोटै: सार्धमानता: „इस उद्धरण में कालिदास ने कंबोज देश में अखरोट वृक्षों का जो वर्णन किया है वह बहुत समीचीन है। इससे भी इस देश की स्थिति कश्मीर के आस पास प्रतीत होती हैं।महाभारत में कहा गया है कि कर्ण ने राजपुर पहुंचकर कांबोजों को जीता, जिससे राजपुर कंबोज का एक नगर सिद्ध होता है- 'कर्ण राजपुरं गत्वा काम्बोजानिर्जितास्त्वया'। चीनी यात्री हुएन-सांग ने भी अपनी भारत यात्रा के दोरान कंबोज में किसी राजपुर नगर का उल्लेख किया था। [8] महाभारत में हिमालय के उत्तर पश्चमी भाग में बाह्वीक के निकटवर्ती क्षेत्र को दरद देश माना गया है (आदि पर्व ६७/५८ )।. पुराणो में दरद जाति को काम्बोज व बर्बर जातियों के मध्य रखा गया है। कश्मीर के उत्तर भाग में आज भी दरद पुरी है। शायद इस जाति का प्रसार अवश्य हुआ है किन्तु शक /कुषाण /यूची जाति के साथ मिश्रण से इस जाति की अपनी विशिष्टता समाप्त हो गयी होगी।महाभारत में कंबोज के कई राजाओं का वर्णन है जिनमें सुदर्शन और चंद्रवर्मन मुख्य हैं। कौटिल्य अर्थशास्त्र में कंबोज के 'वार्ताशस्त्रोपजीवी' (खेती और शस्त्रों से जीविका चलाने वाले) संघ का उल्लेख है जिससे ज्ञात होता है कि मौर्यकाल से पूर्व यहां गणराज्य स्थापित था। मौर्यकाल में चंद्रगुप्त के साम्राज्य में यह गणराज्य विलीन हो गया होगा।कुसान /शक/हूण की अधिकतर मिश्रित है जिसके चलते ये समझ ना मुश्किल है कि ये जात किस से उत्पन्न हुई इतिहासकारो ने अधिकतर इतिहासकारों का विचार है कि ये कंबोडिया से आये हैं लेकिन जो किसी भी तर्क से संभव नही है क्यों कि सिर्फ विचार कर के मत देना पूर्ण गलत है जिस कंम्बोज की नश्ल शक,कुषाण, हूण की नश्ल के दिखते हैं A branch of Central Asian Kambojas seems also to have migrated eastwards towards Tibet in the wake of Kushana (1st century) or else Huna (5th century) pressure and hence their notice in the chronicles of Tibet (Kam-po-tsa, Kam-po-ce, Kam-po-ji) and Nepal (Kambojadesa). [ "The view that Nepali Traditions apply name Kamboja Desha to Tibet is based on the statement made by Foucher, [Iconographie bouddhique pp 134-135] on the authority of Nepali Pandit of B.H Hdgson. But it is supported by two manuscripts [No 7768 & 7777] कम्बोज मूल रूप से आर्यन्स नश्ल के थे जिनको अधिकतर इतिहासकारों ने आर्यन्स नश्ल का ही बताया है Kshatriya clans of north-west must have descended from the Ancient Kambojas. [ For reference to overlap of the Kamboj clan names, see Glossary of Tribes, II, p 444, fn. iii.कंम्बोज सूर्य पूजा करने के कारण इनको सूर्यवंशी होने का भी मत है The Kamboj in Phillaur, District Jullundur, too claimed to be "Suryavanshi" [Glossary of Tribes, Vol II, p 443 fn, H. A. Rose.].जातियों की पहचान के लिये अंग्रेज-अन्वेषकों ने कई साधन निकाले हैं जिनमें से दो मुख्य है -
1. शारीरिक बनावट।
2. भाषा-विज्ञान।
शरीर-शास्त्र के साधन से अन्वेषकों ने मनुष्य जाति को पांच भागों में विभक्त कर दिया है -
1. आर्य,
2. मंगोलियन,
3. मलय,
4. हबशी
5. अमेरिकन
रंग के हिसाब से ये ही जातियां गौरी, पीली, बादामी, काली और लाल कहलाती है। आर्य लोग रंग के गोरे या उजले उंचे ललाट वाले, सुआसारी नाक, चौड़ी छाती और काली आंखें तथा लम्बी बाहें और टांगें रखने वाले होते हैं। मंगोलियन अथवा तातारियों की चिपटी नाक, पीला रंग, चपटा माथा होता है। यही बजह होती है किसी जाति की पूर्वज और वंसजों की पहचान के जिसके तर्क मौजूद हैं मि. ई. बी. हेवल लिखते हैं "Ethnographic investigations show that the Indo-Aryan type described in the the Hindu epic - a tall, fair complexioned, long headed race, with narrow prominent noses, broad shoulders, long arms, thin-waists like a lion and thin legs like a deer"कंम्बोज जाती का कंम्बोज महाजनपद से समस्त भारत के उत्तर मध्य भू भाग में प्रवेश हुआ जिसके चलते आज ये अपने मूल को भूल चुके हैं और ये आज जाट ,राजपूत,खत्री जैसी समस्त जातियों में मौजूद हैं साथ ही हिन्दू मुसलिम सिक्ख धर्म मे भी मौजूद हैं तथा साथ कुछ हिस्सों में स्वतंत्र कंम्बोज जाती के रूप में भी हैं कंम्बोज जाती आज गुजरात During Indo-Scythian invasion of India in the pre-Kushana period, Kambojas appear to have migrated to Gujrat, Southern India, कन्नौज ,दिल्ली ,हरयाणा ,पंजाब में मिल सकती है Pehova Prasati Evidence
Even after settling in India, the Kambojas had continued to maintain their position in science and arts. The Pehova Prasati (panegyric) of the reign of king Mahendrapala of Kanauj (10th century AD) refers to one "Acyuta Kamboja", son of "Vishnu Kamboja" who has been described as a great Sanskrit scholar. Acyuta Kamboja is also styled as the personification of "Vaidya Dhanavantri", the fatherof Ayurvedic systmof medicine [Epigraphiia Indica Vol I, 1892, p 247.] लेकिन इनका मूल वंश गुर्जर कहना कोई अतिशयोक्ति नही होगी जिनके गोत्र नश्ल शारीरिक बनाबट गुर्जरों जैसी है The Kamboj undoubtedly are, and therefore, the Arains, in all probability, are a mixture of numerous diverse ethnic elements from the ancient Sakas,Kambojas, Yavanas, Pahlavas, Hunas, Gurjaras etc. It is notable that the title of "Mahar(mihir)" is prevalent both among the Arains as well as the Gujjars [The Tribes and Castes of the North-western Provinces and Oudh, 1896, p 206, William Crooke - Ethnology.] तो उनको क्या कहा जा सकता है कंम्बोज जाती को कन्नौज में रहने की जगह गुर्जर सम्राट महिपाल देव के समय मे मिली थी सम्भवतः सम्भव है कि इनको पहोवा से कन्नौज तक लाने का श्रेय भी महिपाल देव का ही था
लेखक-इंजी राम प्रताप सिंह
कंबोज उत्तरापथ के गांधार के निकट स्थित प्राचीन भारतीय जनपद था जिसकी ठीक-ठाक स्थिति दक्षिण पश्चिम के पुँछ के इलाके के अंतर्गत मानी जा सकती है। प्राचीन संस्कृत एवं पाली साहित्य में कंबोज और गांधार का नाम प्राय: साथ-साथ आता है। जिस प्रकार गांधार के उत्कृष्ट ऊन का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है (१,१२६) उसी प्रकार कंबोज के कंबलों का उल्लेख यास्क के निरुक्त में हुआ है (२, २)। वास्तव में यास्क ने 'कंबोज' शब्द की व्युत्पत्ति ही 'सुंदर कंबलों का उपभोग करनेवाले' या विकल्प में सुंदर भोजन करनेवाले लोग-इस प्रकार की है। गांधार और कंबोज इन दोनों जनपदों के अभिन्न संबंध की परंपरा से ही इनका सान्निध्य सिद्ध हुआ है। गांधार अफगानिस्तान (कंदहार) का संवर्ती प्रदेश था और इसी के पड़ोस में पूर्व की ओर कंबोज की स्थिति थी। कंबोज प्राचीन भारत के १६ महाजनपदों में से एक था। इसका उल्लेख पाणिनी के अष्टाध्यायी में १५ शक्तिशाली जनपदों में से एक के रूप में भी मिलता है। बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय , महावस्तु मे १६ महाजनपदों में भी कम्बोज का कई बार उल्लेख हुआ है - ये गांधारों के समीपवर्ती थे। इनमें कभी निकट संबंध भी रहा होगा, क्योंकि अनेक स्थानों पर गांधार और कांबोज का नाम साथ साथ आता है। इसका क्षेत्र आधुनुक उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मिलता है। राजपुर, द्वारका तथा Kapishi[1] इनके प्रमुख नगर थे। इसका उल्लेख इरानी प्राचीन लेखों में भी मिलता है जिसमें इसे राजा कम्बीजेस के प्रदेश से जोड़ा जाता है।
प्राचीन वैदिक साहित्य में कंबोज देश या यहाँ के निवासी कांबोजों के विषय में कई उल्लेख हैं जिनसे ज्ञात होता है कि कंबोज देश का विस्तार उत्तर में
कश्मीर से हिंदूकुश तक था। वंश ब्राह्मण में कंबोज के औपमन्यव नामक आचार्य का उल्लेख है।
शतपथ ब्राह्मण के एक स्थल से ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तरी लोगों अर्थात उत्तरी कुरुओं की तथा कुरु-पांचालों की बोली समान और शुद्ध मानी जाती थी।
वाल्मीकि- रामायण में कंबोज, वाल्हीक और वनायु देशों को श्रेष्ठ घोड़ों के लिये उत्तम देश बताया है, जो इस प्रकार है:
“ ' कांबोज विषये जातैर्बाल्हीकैश्च हयोत्तमै: वनायुजैर्नदीजैश्च पूर्णाहरिहयोत्तमै: [3] „
महाभारत के अनुसार अर्जुन ने अपनी उत्तर दिशा की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में दर्दरों या दर्दिस्तान के निवासियों के साथ ही कांबोजों को भी परास्त किया था-
'गृहीत्वा तु बलं सारं फाल्गुन: पांडुनन्दन: दरदान् सह काम्बोजैरजयत् पाकशासनि:'
महाभारत और राजतरंगिणी में कंबोज की स्थिति उत्तरापथ में बताई गई है।महाभारत में कहा गया है कि कर्ण ने राजपुर पहुंचकर कांबोजों को जीता, जिससे राजपुर कंबोज का एक नगर सिद्ध होता है- 'कर्ण राजपुरं गत्वा काम्बोजानिर्जितास्त्वया'। कालिदास ने रघुवंश में रघु के द्वारा कांबोजों की पराजय का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है कि :“ काम्बोजा: समरे सोढुं तस्य वीर्यमनीश्वरा:, गजालान् परिक्लिष्टैरक्षोटै: सार्धमानता: „इस उद्धरण में कालिदास ने कंबोज देश में अखरोट वृक्षों का जो वर्णन किया है वह बहुत समीचीन है। इससे भी इस देश की स्थिति कश्मीर के आस पास प्रतीत होती हैं।महाभारत में कहा गया है कि कर्ण ने राजपुर पहुंचकर कांबोजों को जीता, जिससे राजपुर कंबोज का एक नगर सिद्ध होता है- 'कर्ण राजपुरं गत्वा काम्बोजानिर्जितास्त्वया'। चीनी यात्री हुएन-सांग ने भी अपनी भारत यात्रा के दोरान कंबोज में किसी राजपुर नगर का उल्लेख किया था। [8] महाभारत में हिमालय के उत्तर पश्चमी भाग में बाह्वीक के निकटवर्ती क्षेत्र को दरद देश माना गया है (आदि पर्व ६७/५८ )।. पुराणो में दरद जाति को काम्बोज व बर्बर जातियों के मध्य रखा गया है। कश्मीर के उत्तर भाग में आज भी दरद पुरी है। शायद इस जाति का प्रसार अवश्य हुआ है किन्तु शक /कुषाण /यूची जाति के साथ मिश्रण से इस जाति की अपनी विशिष्टता समाप्त हो गयी होगी।महाभारत में कंबोज के कई राजाओं का वर्णन है जिनमें सुदर्शन और चंद्रवर्मन मुख्य हैं। कौटिल्य अर्थशास्त्र में कंबोज के 'वार्ताशस्त्रोपजीवी' (खेती और शस्त्रों से जीविका चलाने वाले) संघ का उल्लेख है जिससे ज्ञात होता है कि मौर्यकाल से पूर्व यहां गणराज्य स्थापित था। मौर्यकाल में चंद्रगुप्त के साम्राज्य में यह गणराज्य विलीन हो गया होगा।कुसान /शक/हूण की अधिकतर मिश्रित है जिसके चलते ये समझ ना मुश्किल है कि ये जात किस से उत्पन्न हुई इतिहासकारो ने अधिकतर इतिहासकारों का विचार है कि ये कंबोडिया से आये हैं लेकिन जो किसी भी तर्क से संभव नही है क्यों कि सिर्फ विचार कर के मत देना पूर्ण गलत है जिस कंम्बोज की नश्ल शक,कुषाण, हूण की नश्ल के दिखते हैं A branch of Central Asian Kambojas seems also to have migrated eastwards towards Tibet in the wake of Kushana (1st century) or else Huna (5th century) pressure and hence their notice in the chronicles of Tibet (Kam-po-tsa, Kam-po-ce, Kam-po-ji) and Nepal (Kambojadesa). [ "The view that Nepali Traditions apply name Kamboja Desha to Tibet is based on the statement made by Foucher, [Iconographie bouddhique pp 134-135] on the authority of Nepali Pandit of B.H Hdgson. But it is supported by two manuscripts [No 7768 & 7777] कम्बोज मूल रूप से आर्यन्स नश्ल के थे जिनको अधिकतर इतिहासकारों ने आर्यन्स नश्ल का ही बताया है Kshatriya clans of north-west must have descended from the Ancient Kambojas. [ For reference to overlap of the Kamboj clan names, see Glossary of Tribes, II, p 444, fn. iii.कंम्बोज सूर्य पूजा करने के कारण इनको सूर्यवंशी होने का भी मत है The Kamboj in Phillaur, District Jullundur, too claimed to be "Suryavanshi" [Glossary of Tribes, Vol II, p 443 fn, H. A. Rose.].जातियों की पहचान के लिये अंग्रेज-अन्वेषकों ने कई साधन निकाले हैं जिनमें से दो मुख्य है -
1. शारीरिक बनावट।
2. भाषा-विज्ञान।
शरीर-शास्त्र के साधन से अन्वेषकों ने मनुष्य जाति को पांच भागों में विभक्त कर दिया है -
1. आर्य,
2. मंगोलियन,
3. मलय,
4. हबशी
5. अमेरिकन
रंग के हिसाब से ये ही जातियां गौरी, पीली, बादामी, काली और लाल कहलाती है। आर्य लोग रंग के गोरे या उजले उंचे ललाट वाले, सुआसारी नाक, चौड़ी छाती और काली आंखें तथा लम्बी बाहें और टांगें रखने वाले होते हैं। मंगोलियन अथवा तातारियों की चिपटी नाक, पीला रंग, चपटा माथा होता है। यही बजह होती है किसी जाति की पूर्वज और वंसजों की पहचान के जिसके तर्क मौजूद हैं मि. ई. बी. हेवल लिखते हैं "Ethnographic investigations show that the Indo-Aryan type described in the the Hindu epic - a tall, fair complexioned, long headed race, with narrow prominent noses, broad shoulders, long arms, thin-waists like a lion and thin legs like a deer"कंम्बोज जाती का कंम्बोज महाजनपद से समस्त भारत के उत्तर मध्य भू भाग में प्रवेश हुआ जिसके चलते आज ये अपने मूल को भूल चुके हैं और ये आज जाट ,राजपूत,खत्री जैसी समस्त जातियों में मौजूद हैं साथ ही हिन्दू मुसलिम सिक्ख धर्म मे भी मौजूद हैं तथा साथ कुछ हिस्सों में स्वतंत्र कंम्बोज जाती के रूप में भी हैं कंम्बोज जाती आज गुजरात During Indo-Scythian invasion of India in the pre-Kushana period, Kambojas appear to have migrated to Gujrat, Southern India, कन्नौज ,दिल्ली ,हरयाणा ,पंजाब में मिल सकती है Pehova Prasati Evidence
Even after settling in India, the Kambojas had continued to maintain their position in science and arts. The Pehova Prasati (panegyric) of the reign of king Mahendrapala of Kanauj (10th century AD) refers to one "Acyuta Kamboja", son of "Vishnu Kamboja" who has been described as a great Sanskrit scholar. Acyuta Kamboja is also styled as the personification of "Vaidya Dhanavantri", the fatherof Ayurvedic systmof medicine [Epigraphiia Indica Vol I, 1892, p 247.] लेकिन इनका मूल वंश गुर्जर कहना कोई अतिशयोक्ति नही होगी जिनके गोत्र नश्ल शारीरिक बनाबट गुर्जरों जैसी है The Kamboj undoubtedly are, and therefore, the Arains, in all probability, are a mixture of numerous diverse ethnic elements from the ancient Sakas,Kambojas, Yavanas, Pahlavas, Hunas, Gurjaras etc. It is notable that the title of "Mahar(mihir)" is prevalent both among the Arains as well as the Gujjars [The Tribes and Castes of the North-western Provinces and Oudh, 1896, p 206, William Crooke - Ethnology.] तो उनको क्या कहा जा सकता है कंम्बोज जाती को कन्नौज में रहने की जगह गुर्जर सम्राट महिपाल देव के समय मे मिली थी सम्भवतः सम्भव है कि इनको पहोवा से कन्नौज तक लाने का श्रेय भी महिपाल देव का ही था
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