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Sunday, 18 November 2018

गुर्जर घार हुण गुर्जर

गुर्जर_घार भाग 6-. गुर्जर घार हुण गुर्जरों की सत्ता
लेखक -इंजी. राम प्रताप सिंह
गुर्जर , हूण राजवंश को गुर्जर राजवंश की ही सत्ता के रूप में जाना जाता है इस मत के अनुसार विदित सभी इतिहासकारों ने एक मत जबाब दिए जिसके अनुसार हुण गुर्जर थे , बुहलर, होर्नले, वी. ए. स्मिथ, विलियम क्रुक आदि इतिहासकारो ने गुर्जरों को श्वेत हूणों से सम्बंधित माना हैं|  कैम्पबेल और डी. आर. भंडारकर गुर्जरों की उत्पत्ति श्वेत हूणों की खज़र शाखा से बताते हैं| भारत में आज भी ‘हूण’ गुर्जरों का एक प्रमुख गोत्र हैं जिसकी आबादी अनेक प्रदेशो में हैं| मिहिरकुल तोरमाण के सभी विजय अभियानों हमेशा उसके साथ रहता था। उसके शासन काल के पंद्रहवे वर्ष का एक अभिलेख ग्वालियर एक सूर्य मंदिर से प्राप्त हुआ हैं| इस प्रकार हूणों ने मालवा इलाके में अपनी स्थति मज़बूत कर ली थी| उसने उत्तर भारत की विजय को पूर्ण किया और गुप्तो सी भी नजराना वसूल किया| मिहिरकुल ने पंजाब स्थित स्यालकोट को अपनी राजधानी बनाया|मिहिकुल हूण एक कट्टर शैव था। उसने अपने शासन काल में हजारों शिव मंदिर बनवाये| मंदसोर अभिलेख के अनुसार यशोधर्मन से युद्ध होने से पूर्व उसने भगवान स्थाणु (शिव) के अलावा किसी अन्य के सामने अपना सर नहीं झुकाया था। मिहिरकुल ने ग्वालियर अभिलेख में भी अपने को शिव भक्त कहा हैं| मिहिरकुल के सिक्कों पर जयतु वृष लिखा हैं जिसका अर्थ हैं- जय नंदी| वृष शिव कि सवारी हैं जिसका मिथकीय नाम नंदी हैं| जैन ग्रन्थ कुवयमाल के अनुसार तोरमाण चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित पवैय्या  नगरी से भारत पर शासन करता था| यह पवैय्या नगरी ग्वालियर के पास स्थित थी| जिसमे मिहिर गुल के ग्वालियर प्रस्सति अभिलेख में समस्त विवरण १. [*][*ज](य)ति जलदवालध्वान्तम् उत्सारयन् स्वैःकिरणनिवहजालैर् व्योम विद्योतयद्भिःउ[*दय-गिरितटाग्रं] मण्डय{+न्} यस्तुरंगैःचकितगमनखेदभ्रान्तचंचत्सटान्तैः। उदयगिरि

२. [⏑--](ग्र)स्तचक्रो र्त्तिहर्त्ताभुवनभवनदीपः शर्व्वरीनाशहेतुःतपितकनकवर्ण्णैर् अंशुभिf पंकजानामभिनवरमणीयं यो (वि)धत्ते स वो व्याट्।श्रीतोरमाण इति यः प्रथितो

३. [*?भू-च](?क्र)पः प्रभूतगुणःसत्यप्रदानशौर्याद् येन मही न्यायत(शा)स्तातस्योदितकुलकीर्त्तेः पुत्रो तुलविक्रमः पतिः पृथ्व्याःमिहिरकुलेति ख्यातो भंगो यः पशुपति(म् अ)[आर्रयार्रय्

४. [*तस्मिन् रा]जनि शासति पृथ्वीं पृथुविमललोचने र्त्तिहरेअभिवर्द्धमानराज्ये पंचदशाब्दे नृपवृषस्य।शशिरश्मिहासविकसितकुमुदोत्पलगन्धशीतलामोदेकार्त्तिकमासे प्राप्त गगन

५. [*?पतौ] निर्मले भाति।द्विजगणमुख्यैर् अभिसंस्तुते च पुण्याहनादघोषेणतिथिनक्षत्रमुहूर्त्ते संप्राप्ते सुप्रशस्तद्(इ)ने।मातृतुलस्य तु पौत्रः पुत्रश् च तथैव मातृदासस्यनाम्ना च मातृचेतः पर्व्व-

६. [*त][-⏑][*?पु](र)वास्(त्)अव्(य्)अःनानाधातुविचित्रे गोपाह्वयनाम्नि भूधरे रम्येकारितवान् शैलमयं भानोः प्रासादवरमुख्यं।पुण्याभिवृद्धिहेतोर् म्मातापित्रोस् तथात्मनश् चैववसता च गिरिवरे स्मि राज्ञः

७. [...](?पा)देनये कारयन्ति भानोश् चन्द्रांशुसमप्रभं गृहप्रवरंतेषां वासः स्वर्ग्गे यावत्कल्पक्षयो भवति॥भक्त्या रवेर् व्विरचितं सद्धर्म्मख्यापनं सुकीर्त्तिमयंनाम्ना च केशवेति प्रथितेन च{-।}

८. [...](?दि)त्येन॥यावच्छर्व्वजटाकलापगहने विद्योतते चन्द्रमादिव्यस्त्रीचरणैर् व्विभूषिततटो यावच् च मेरुर् नगःयावच् चोरसि नीलनीरदनिभे विष्णुर् व्विभर्त्य् उज्वलांश्रीं{-स्} तावद् गिरिमूर्ध्नि तिष्ठति

९. [*?शिला-प्रा]सादमुख्यो रमे॥ ग्वालियर क्षेत्र में हूणों का आधिपत्य था| हूण सम्राट मिहिरकुल के शासन काल के पंद्रहवे वर्ष का एक अभिलेखग्वालियर के पास से एक सूर्य मंदिर से प्राप्त हुआ हैं| ग्वालियर जिले की डबरा तहसील में भारस हूण गुर्जरों का प्रमुख गाँव हैं| आज भी चंबल संभागग्वालियर तथा इसके समीपवर्ती जिलो के गुर्जर बाहुल्य अनेक गाँवो में हूण गुर्जरों की बिखरी  आबादी हैं| ग्वालियर की डबरा तहसील में भारस हूण गुर्जरों का मुख्य गाँव हैं| भरास के पास ही चपराना गुर्जरों का बडेरा गाँव हैं| दोनों गोंवो के लोग पग-पलटा भाई माने जाते हैं तथा आपस में शादी नहीं करते| मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में नरवर के पास डोंगरी, और टिकटोली हूण गुर्जरों का प्रसिद्ध गाँव हैं|  शेष अगले भाग में जारी............।

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