गुर्जर घार भाग 4-
लेखक- इंजी.राम प्रताप सिंह
ग्वालियर को गुर्जर सम्राज्य के बाद गुर्जर घार के नाम से जाना जाने लगा था , ग्वालियर नगर और क्षेत्र का प्राचीनतम नाम गोपराष्ट्र मिलता है। पहले यह गोपराष्ट्र चेदि जनपद के अंतर्गत था। कालांतर में यह स्वतंत्र जनपद हो गया है। उस समय जनपद का अर्थ राष्ट्र के रूप में प्रयोग होने लगा।
इसके चारों ओर जनपद थे जिसमे, सूरसेन चेदि, निषध, आदि राष्ट्र थे। ग्वालियर का सर्वाधिक प्राचीन उल्लेख मार्कण्डेय पुराण में गोवर्धनपुरम्, मानसिंह तोमर (1489-1510 ई.) के शिलालेख में"गोवर्धनगिरि" सन् 525 ई. के "मातृचेट" शिलालेख में "गोपाह्य" के नाम से मिलता है। मिहिरकुल के राज्य के पंद्रहवें वर्ष (सन् 527 ई.) में यहाँ के गढ़ को गोपमूधर, दसवीं शताब्दी में गुर्जर प्रतिहारों के शिलालेख में गोपाद्रि तथा गोपागिरि, रत्पनाल कच्छपघात के लगभग 1115 ई. के शिलालेख में गोपाद्रि तथा गोपागिरि, रत्नपाल कच्छपघात के लगभग 1115 ई. के शिलालेख में "गोपक्षेत्र" विक्रम संवत् 1150 ई. के शिलालेख में गोपाद्रि तथा अनेक शिलालेखों में "गोपाचल" "गोपशैल" तथा "गोपपर्वत" वि.सं. 1161 के शिलालेख में गोपलकेरि, ग्वालियर खेड़ा कहा गया है।अपभ्रंश भाषा में कवियों ने इस दुर्ग को "गोपालगिरि, गोपगिरि, गोव्वागिरि"कहा है। हिंदी में सबसे पहले सन् 1489 में कवि मानिक ने "ग्वालियर" संज्ञा का प्रयोग किया है। तुर्क इतिहासकारों ने गालेवार या गलियूर लिखा है।मराठी में "ग्वाल्हेर" कहते हैं। कश्मीर के सुल्तान नेतुल आवेदीन के राजकवि जीवराज ने "गोपालपुर"के नाम से संबोधित किया है।भट्टारक सुरेंद्र कीर्ति ने सं. 1740 में रचि रविव्रत कथा में ग्वालियर को गढ़ गोपाचल लिखा है- "गढ़गोपाचल नगर भलो शुभ शानो" साथ ही अनेक जैन ग्रंथ प्रशस्तियों में एवं जैन प्रतिमा प्रशस्तियों में गोपाचल दुर्ग, गोपाद्रौ, गोयलगढ़, गोपाचल आदि नामों का अधिकतम उल्लेख मिलता है। ग्वालियर में मौजूद ग्वालियर किले का निर्माण 8वीं शताब्दी में किया गया था. तीन वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले इस किले की ऊंचाई 35 फीट है. यह किला मध्यकालीन स्थापत्य के अद्भुत नमूनों में से एक है. यह ग्वालियर शहर का प्रमुख स्मारक है जो गोपांचल नामक छोटी पहाड़ी पर स्थित है. लाल बलुए पत्थर से निर्मित यह किला देश के सबसे बड़े किले में से एक है और इसका भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है.बहुत समृद्ध है ग्वालियर के किले का इतिहास इतिहासकारों के दर्ज आंकड़े में इस किले का निर्माण सन 727 ईस्वी में सूर्यसेन नामक एक स्थानीय सरदार ने किया जो इस किले से 12 किलोमीटर दूर सिंहोनिया गांव का रहने वाला था. इस किले पर कई राजाओं ने राज किया है. किले की स्थापना के बाद करीब 989 सालों तक इस पर गुर्जर वंश ने राज किया जिसके गुर्जर साम्राट देवराज, वत्सराज, ककुस्थ, रामभद्र, मिहिरभोज महान गुर्जर सम्राट, महिपाल गुर्जरेंद्र, महेन्द्रपाल आदि गुर्जर वंश के राजाओं ने ग्वालियर पर 250 साल राज किया जिसकी जानकारी हमे ग्वालियर प्रस्सति और ,सागर ताल अभिलख से मिलती है ,गुर्जर सम्राट मिहिर भोज महान की बनाई गयी तेली का मंदिर , सास बहु का मंदिर ,चतुर्भुज मंदिर बनबाई गए थे आदि का निर्माण बन बाये थे । इसके बाद इस पर प्रतिहार वंश ने राज किया. 1023 ईस्वी में मोहम्मद गजनी ने इस किले पर आक्रमण किया लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा. 1196 ईस्वी में लंबे घेराबंदी के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस किले को अपनी अधीन किया लेकिन 1211 ईस्वी में उसे हार का सामना करना पड़ा. फिर 1231 ईस्वी में गुलाम वंश के संस्थापक इल्तुतमिश ने इसे अपने अधीन किया इसके बाद मानसिंह तोमर ने अपने कब्जे में कर लिया था (1486-1516) जिन्होंने अपनी पत्नी मृगनयनी के लिए गूजरी महल बनवाया. 1398 से 1505 ईस्वी तक इस किले पर तोमर वंश का राज रहा.मानसिंह ने इस दौरान इब्राहिम लोदी कीअधीनता स्वीकार ली थी. लोदी की मौत के बाद जब मानसिंह के बेटे विक्रमादित्य को हुमायूं ने दिल्ली दरबार में बुलाया तो उन्होंने आने से इंकार कर दिया. इसके बाद बाबर ने ग्वालियर पर हमला कर इसे अपने कब्जे में लिया और इसपर राज किया. लेकिन शेरशाह सूरी ने बाबर के बेटे हुमायूं को हराकर इस किले को सूरी वंश के अधीन किया. शेरशाह की मौत के बाद 1540 में उनके बेटे इस्लाम शाह ने कुछ समय के लिए अपनी राजधानी दिल्ली से बदलकर ग्वालियर कर दिया. इस्लाम शाह की मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी आदिल शाह सूरी ने ग्वालियर की रक्षा का जिम्मा हेम चंद्र विक्रमादित्य (हेमू) को सौंप खुद चुनार चले गए. हेमू ने इसके बाद कई विद्रोहों का दमन करते हुए कुल 1553-56 के बीच 22 लड़ाईयां जीतीं. 1556 में हेमू ने ही पानीपत की दूसरी लड़ाई में आगरा और दिल्ली में अकबर को हराकर हिंदू राज की स्थापना की. इसके बाद हेमू ने अपनी राजधानी बदलकर वापस दिल्ली कर दी और पुराना किला से राज करने लगा.इसके बाद अकबर ने ग्वालियर के किले पर आक्रमण कर इसे अपने कब्जे में लिया और इसे कारागर में तब्दील कर दिया गया. मुगल वंश के बाद इसपर राणा और जाटों का राज रहा फिर इस पर मराठों ने अपनी पताका फहराई.1736 में जाट राजा महाराजा भीम सिंह राणा ने इस पर अपना आधिपत्य जमाया और 1756 तक इसे अपने अधीन रखा. 1779 में सिंधिया कुल के मराठा छत्रप ने इसे जीता और किले में सेना तैनात कर दी. लेकिन इसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने छीन लिया. फिर 1780 में इसका नियंत्रण गौंड राणा छत्तर सिंह के पास गया जिन्होंने मराठों से इसे छीना. इसके बाद 1784 में महादजी सिंधिया ने इसे वापस हासिल किया. 1804 और 1844 के बीच इस किले पर अंग्रेजों और सिंधिया के बीच नियंत्रण बदलता रहा. हालांकि जनवरी 1844 में महाराजपुर की लड़ाई के बाद यह किला अंततः सिंधिया के कब्जे में आ गया.
शेष अगले भाग में
लेखक- इंजी.राम प्रताप सिंह
ग्वालियर को गुर्जर सम्राज्य के बाद गुर्जर घार के नाम से जाना जाने लगा था , ग्वालियर नगर और क्षेत्र का प्राचीनतम नाम गोपराष्ट्र मिलता है। पहले यह गोपराष्ट्र चेदि जनपद के अंतर्गत था। कालांतर में यह स्वतंत्र जनपद हो गया है। उस समय जनपद का अर्थ राष्ट्र के रूप में प्रयोग होने लगा।
इसके चारों ओर जनपद थे जिसमे, सूरसेन चेदि, निषध, आदि राष्ट्र थे। ग्वालियर का सर्वाधिक प्राचीन उल्लेख मार्कण्डेय पुराण में गोवर्धनपुरम्, मानसिंह तोमर (1489-1510 ई.) के शिलालेख में"गोवर्धनगिरि" सन् 525 ई. के "मातृचेट" शिलालेख में "गोपाह्य" के नाम से मिलता है। मिहिरकुल के राज्य के पंद्रहवें वर्ष (सन् 527 ई.) में यहाँ के गढ़ को गोपमूधर, दसवीं शताब्दी में गुर्जर प्रतिहारों के शिलालेख में गोपाद्रि तथा गोपागिरि, रत्पनाल कच्छपघात के लगभग 1115 ई. के शिलालेख में गोपाद्रि तथा गोपागिरि, रत्नपाल कच्छपघात के लगभग 1115 ई. के शिलालेख में "गोपक्षेत्र" विक्रम संवत् 1150 ई. के शिलालेख में गोपाद्रि तथा अनेक शिलालेखों में "गोपाचल" "गोपशैल" तथा "गोपपर्वत" वि.सं. 1161 के शिलालेख में गोपलकेरि, ग्वालियर खेड़ा कहा गया है।अपभ्रंश भाषा में कवियों ने इस दुर्ग को "गोपालगिरि, गोपगिरि, गोव्वागिरि"कहा है। हिंदी में सबसे पहले सन् 1489 में कवि मानिक ने "ग्वालियर" संज्ञा का प्रयोग किया है। तुर्क इतिहासकारों ने गालेवार या गलियूर लिखा है।मराठी में "ग्वाल्हेर" कहते हैं। कश्मीर के सुल्तान नेतुल आवेदीन के राजकवि जीवराज ने "गोपालपुर"के नाम से संबोधित किया है।भट्टारक सुरेंद्र कीर्ति ने सं. 1740 में रचि रविव्रत कथा में ग्वालियर को गढ़ गोपाचल लिखा है- "गढ़गोपाचल नगर भलो शुभ शानो" साथ ही अनेक जैन ग्रंथ प्रशस्तियों में एवं जैन प्रतिमा प्रशस्तियों में गोपाचल दुर्ग, गोपाद्रौ, गोयलगढ़, गोपाचल आदि नामों का अधिकतम उल्लेख मिलता है। ग्वालियर में मौजूद ग्वालियर किले का निर्माण 8वीं शताब्दी में किया गया था. तीन वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले इस किले की ऊंचाई 35 फीट है. यह किला मध्यकालीन स्थापत्य के अद्भुत नमूनों में से एक है. यह ग्वालियर शहर का प्रमुख स्मारक है जो गोपांचल नामक छोटी पहाड़ी पर स्थित है. लाल बलुए पत्थर से निर्मित यह किला देश के सबसे बड़े किले में से एक है और इसका भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है.बहुत समृद्ध है ग्वालियर के किले का इतिहास इतिहासकारों के दर्ज आंकड़े में इस किले का निर्माण सन 727 ईस्वी में सूर्यसेन नामक एक स्थानीय सरदार ने किया जो इस किले से 12 किलोमीटर दूर सिंहोनिया गांव का रहने वाला था. इस किले पर कई राजाओं ने राज किया है. किले की स्थापना के बाद करीब 989 सालों तक इस पर गुर्जर वंश ने राज किया जिसके गुर्जर साम्राट देवराज, वत्सराज, ककुस्थ, रामभद्र, मिहिरभोज महान गुर्जर सम्राट, महिपाल गुर्जरेंद्र, महेन्द्रपाल आदि गुर्जर वंश के राजाओं ने ग्वालियर पर 250 साल राज किया जिसकी जानकारी हमे ग्वालियर प्रस्सति और ,सागर ताल अभिलख से मिलती है ,गुर्जर सम्राट मिहिर भोज महान की बनाई गयी तेली का मंदिर , सास बहु का मंदिर ,चतुर्भुज मंदिर बनबाई गए थे आदि का निर्माण बन बाये थे । इसके बाद इस पर प्रतिहार वंश ने राज किया. 1023 ईस्वी में मोहम्मद गजनी ने इस किले पर आक्रमण किया लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा. 1196 ईस्वी में लंबे घेराबंदी के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस किले को अपनी अधीन किया लेकिन 1211 ईस्वी में उसे हार का सामना करना पड़ा. फिर 1231 ईस्वी में गुलाम वंश के संस्थापक इल्तुतमिश ने इसे अपने अधीन किया इसके बाद मानसिंह तोमर ने अपने कब्जे में कर लिया था (1486-1516) जिन्होंने अपनी पत्नी मृगनयनी के लिए गूजरी महल बनवाया. 1398 से 1505 ईस्वी तक इस किले पर तोमर वंश का राज रहा.मानसिंह ने इस दौरान इब्राहिम लोदी कीअधीनता स्वीकार ली थी. लोदी की मौत के बाद जब मानसिंह के बेटे विक्रमादित्य को हुमायूं ने दिल्ली दरबार में बुलाया तो उन्होंने आने से इंकार कर दिया. इसके बाद बाबर ने ग्वालियर पर हमला कर इसे अपने कब्जे में लिया और इसपर राज किया. लेकिन शेरशाह सूरी ने बाबर के बेटे हुमायूं को हराकर इस किले को सूरी वंश के अधीन किया. शेरशाह की मौत के बाद 1540 में उनके बेटे इस्लाम शाह ने कुछ समय के लिए अपनी राजधानी दिल्ली से बदलकर ग्वालियर कर दिया. इस्लाम शाह की मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी आदिल शाह सूरी ने ग्वालियर की रक्षा का जिम्मा हेम चंद्र विक्रमादित्य (हेमू) को सौंप खुद चुनार चले गए. हेमू ने इसके बाद कई विद्रोहों का दमन करते हुए कुल 1553-56 के बीच 22 लड़ाईयां जीतीं. 1556 में हेमू ने ही पानीपत की दूसरी लड़ाई में आगरा और दिल्ली में अकबर को हराकर हिंदू राज की स्थापना की. इसके बाद हेमू ने अपनी राजधानी बदलकर वापस दिल्ली कर दी और पुराना किला से राज करने लगा.इसके बाद अकबर ने ग्वालियर के किले पर आक्रमण कर इसे अपने कब्जे में लिया और इसे कारागर में तब्दील कर दिया गया. मुगल वंश के बाद इसपर राणा और जाटों का राज रहा फिर इस पर मराठों ने अपनी पताका फहराई.1736 में जाट राजा महाराजा भीम सिंह राणा ने इस पर अपना आधिपत्य जमाया और 1756 तक इसे अपने अधीन रखा. 1779 में सिंधिया कुल के मराठा छत्रप ने इसे जीता और किले में सेना तैनात कर दी. लेकिन इसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने छीन लिया. फिर 1780 में इसका नियंत्रण गौंड राणा छत्तर सिंह के पास गया जिन्होंने मराठों से इसे छीना. इसके बाद 1784 में महादजी सिंधिया ने इसे वापस हासिल किया. 1804 और 1844 के बीच इस किले पर अंग्रेजों और सिंधिया के बीच नियंत्रण बदलता रहा. हालांकि जनवरी 1844 में महाराजपुर की लड़ाई के बाद यह किला अंततः सिंधिया के कब्जे में आ गया.
शेष अगले भाग में
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