महराष्ट्र में गुर्जर भूमिका
लेखक- इंजी. राम प्रताप सिंह
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गुर्जर गौरव महान पराक्रमी सर सेनापति प्रताप राव गुर्जर स्मारक |
महाराष्ट्र एक गुर्जरों का प्रमुख गढ़ है ये हमारे समाज की एजुकेशन का पिछड़ापन है कि अपने लोगो को भाइयों को पहचान नही पा रहे हैं और आपसी भाईचारे की जगह ऊंच नीच का भेद भरके बैठे हैं । इसको मिटाने के लिए हमे सबसे आगे आना पड़ेगा हमने प्रथम इस्वी से लेकर आज तक अपना खून बहाया है हमने अरब से हुए हैं हमले या फिर अंग्रेजों के या फिर मुग़लों के हमले को मुह तोड़ जबाब दिया था, महारष्ट्र के विशाल साम्राज्य को स्थापित करने के लिए भी खून बहाया है जिसको हम जग जाहीर वीर सर सेनापति प्रताप राव गुर्जर के नामसे जानते हैं , गुर्जरों में असंख्य कुल बन गए हैं जिसने हमे आपस मे बांट के रखा है हमारी विशाल वीर जाती का इतिहास भारत ही नही मध्य एशिया , उज्बेकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान को ग़ुलाम बनाने बाले महान कुषाण चक्रबर्ती सम्राट कनिष्क ने भी महराष्ट्र पे सासन किया गुज्जरी भासा को उद्गम तथा उपयोग को बढ़ावा दिया जिनके वंश ने भारत पे 350 साल राज किया तथा राजयस्थन ,मध्य प्रदेस जम्मू ,कश्मीर पाकिस्तान अफगानिस्तान, में आज भी उनके वंश से निकले गोत्र के लोग रहते हैं जिनमे , दोरात मुंडन, मंदार, अधाना, अन्नान, बर्गटदेवड़ा/दीवड़ा: गुर्जरों की इस खाप के गाँव गंगा जमुना के ऊपरी दोआब के मुज़फ्फरनगर क्षेत्र में हैं| कैम्पबेल ने भीनमाल नामक अपने लेख में देवड़ा को कुषाण सम्राट कनिष्क की देवपुत्र उपाधि से जोड़ा हैं|
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गुर्जरी माता जानकी बाई |
दीपे/दापा: गुर्जरों की इस खाप की आबादी कल्शान और देवड़ा खाप के साथ ही मिलती हैं तथा तीनो खाप अपने को एक ही मानती हैं| शादी-ब्याह में खाप के बाहर करने के नियम का पालन करते वक्त तीनो आपस में विवाह भी नहीं करते हैं और आपस में भाई माने जाते हैं| संभवतः अन्य दोनों की तरह इनका सम्बन्ध भी कुषाण परिसंघ से हैं, इसके बाद भारत वर्ष में गुर्जरों की सत्ता हुण वंश के रूप में मिहिर गुल हुण और तोरमाण हुण के शासन के अधीन आई जिनके गोत्र के लोग आज महराष्ट्र से लेके जम्मू उत्तर प्रदेश तक गुर्जरों में मिलते हैं, जिनसे ही निकले दोड़े गुर्जरों हैं जिनमे हूण गोत्र हैं| खानदेश गजेटियर के अनुसार दोड़े गुर्जरों के 41 कुल हैं| इनमे से एक अखिलगढ़ के हूण हैं|इसके बाद भारत के महान वंश के कुल आये जिनको इतिहाश में गुर्जर प्रतिहार के नाम से जाना गया जिन्होंने अरबों को 300 साल तक हराये हिंदुत्व की कल्पना करने बाले लोग आज भारत मे ही नही होते अगर गुर्जर प्रतिहार न होते आज भारत भी मुस्लिम देश हो जाता इस बात को हम नही पत्थर चीख चीख के बोलते हैं राज्यस्थान के जिसमे रेगिस्तान में हमारे पूर्वजों ने अपने खून से रेत को लाल किया और देश को संभाल के बचाया था जिनको आज इतिहाश में लगा तार कहीं कहीं इतिहाशकर प्रयत्न किए जाते हैं ये हमारे लोगों की अज्ञानता है कि उनको अपने कुल वंश का कुछ समझ नही आता जे महान चक्रबर्ती सम्राट मिहिर भोज को जानना चाहिए हमारे लोगों को जिन्होंने भारत पर अखंड 55साल राज किया था लेकिन आज हमारी हालात सबके सामने है ।।इसके अतिरिक्त हिंदी भाषी मध्य प्रदेश के इन्दोर संभाग में भी लेवा गूजर मिलते हैं| होशंगाबाद में इन्हें मून्डले या रेवे गूजर कहते हैं| खानदेश गजेटियर के अनुसार रेवा गूजर और गुजरात के लेवा गूजर एक ही हैं इसके साथ ही
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श्री पी के अन्ना पाटिल साहब |
प्रताप राव का वास्तविक नाम कड़तो जी गूजर था, प्रताप राव की उपाधि उसे शिवाजी ने सरेनौबत (प्रधान सेनापति) का पद प्रदान करते समय दी थी। प्रताप का अर्थ होता है- वीर। एक अन्य मत के अनुसार यह उपाधि शिवाजी ने उसे मिर्जा राजा जय सिंह के विरूद्ध युद्ध में दिखाई गई वीरता के कारण सम्मान में दी थी। प्रताप राव गूजर ने अपने सैनिक जीवन का प्रारम्भ शिवाजी की फौज में एक मामूली गुप्तचर के रूप में किया था। एक बार शिवाजी वेश बदल कर सीमा पार करने लगे, तो प्रताप राव ने उन्हें ललकार कर रोक लिया, शिवाजी ने उसकी परीक्षा लेने के लिए भांति-भांति के प्रलोभन दिये, परन्तु प्रताप राव टस से मस नहीं हुआ। शिवाजी प्रताप राव की ईमानदारी, और कर्तव्य परायणता से बेहद प्रसन्न हुए। अपने गुणों और शौर्य सेवाओं के फलस्वरूप सफलता की सीढ़ी चढ़ता गया शीघ्र ही राजगढ़ छावनी का सूबेदार बन गया। 6 सैनिकों ने प्रताप राव का अनुसरण किया, वे बहुत साहस और वीरता से लड़े परन्तु शत्रु की विशाल सेना के मुकाबले लड़ते हुए सात वीर क्या कर सकते थे। अंतत: वे सभी वीरगति को प्राप्त हो गये। प्रताप राव की मृत्यु का सबसे अधिक दु:ख शिवाजी को हुआ। शिवाजी ने महसूस किया कि उन्होंने अपने बहादुर और वि’वसनीय सेनापति को खो दिया। प्रताप राव के परिवार से सदा के लिये नाता बनाए रखने के लिए उन्होंने अपने पुत्र राजाराम का विवाह उसकी पुत्री के साथ कर दिया। प्रताप राव गूजर और उसके छह साथियों के बलिदान की यह घटना मराठा इतिहास की सबसे वीरतापूर्ण घटनाओं में से एक है। प्रतापराव और उसके साथियों इस दुस्साहिक बलिदान पर प्रसिद्ध कवि कुसुमग राज ने ‘वीदात मराठे वीर दुआदले सात’ नामक कविता लिखी है जिसे प्रसिद्ध पा’र्व गायिका लता मंगेश्वर ने गाया है। प्रताप राव गूजर के बलिदान स्थल नैसरी, कोल्हापुर, महाराष्ट्र में उनकी याद में एक स्मारक भी बना हुआ है। शिवाजी के कार्यकाल की सबसे भीषण और आमने-सामने की लड़ाई में मुगलों को सलहेरी के युद्ध में बुरी तरह परास्त करने का श्रेय भी प्रताप राव गूजर को ही प्राप्त है। हिन्दी स्वराज्य की खातिर उसने अपने प्राणों की बाजी लगाकर मुगल सेनापति जय सिंह को उसी के शिविर में हमला कर मारने का प्रयास किया। प्रताप राव गूजर अपनी अंतिम सांस तक हिन्दवी स्वराज्य के लिए संघर्षरत रहा और शिवाजी के राज्याभिषेक की तारीख 15जून 1674 से मात्र तीन माह दस दिन पहले पांच मार्च 1674 को जैसरी के युद्ध में शहीद हो गया। प्रताप राव गूजर जैसे वीर, साहसी और देशभक्त बिरले ही होते हैं। वास्तव में वह उस तत्व का बना था जिससे शहीद बनते हैं। हिन्दवी स्वराज्य की राह में उसका बलिदान स्मरणीय तथ्य है। गुर्जर माता जानकी बाई सहयोगनी तथा मराठा राजवंश में गुर्जरी जानकी बाई और तारा बाई महाराज राजा राम जी की पत्नी थी तारा बाई मराठा राण वंश में एक प्रमुख चेहरा हैं जिनको जाना गया है । इनके अतिरिक्त जानकी बाई गुर्जरी जो कि सर सेनापति प्रताप राव की पुत्री थी जिसकी शादी राजा राम तथा शिवाजी महाराज के पुत्र से शादी की गई , जिनसे जन्मे शिवाजी 2 को राजगद्दी माता तारा बाई ने दिलाई तथा गोद लिया था ।यह रिश्ता है गुर्जर मराठा और कुर्मी का जिसको फिर से एक करना है ।जय माँ तारा बाई जय माँ जानकी बाई की ।।
झुट
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