अफगानिस्तान के गुर्जर कबीले!
लेखक- इंजी.राम प्रताप सिंह
अफगानिस्तान में पहले आर्यों के कबीले आबाद थे और वे बौद्ध धर्म के प्रचार के बाद यह स्थान बौद्धों का गढ़ बन गया। यहां के सभी लोग ध्यान और रहस्य की खोज में लग गए। इधर की जमीन पर अत्यधिक मात्रा में प्रथम दल आर्यों का फिर शक कुसान हुन गुज्जर आकर रहने लगे जिसमे से अधिकतर लोग सूर्य अग्नि चन्द्र की पूजा करते थे ।बुद्ध धर्म मे महायान और हीनयान बन ने के बाद इधर बहुतायत में धार्मिक जीवन मे बदलाव आया ।जो गुज्जर इधर से निकले वो काफी ज्यादा मात्रा में थे शीत प्रदेश की बजह से काफी लोग 3000 साल पहले ही रुक गए जिसमे असंख्य कबिले थे ,आज भी अफगानिस्थान के अंदर 500से ज्यादा स्थानों के नाम गुर्जरों के ऊपर हैं जिनमे गुर्जर नाला ,गुज्जर खान,गुज्जर बाग, गुज्जर घर, आदि स्थान हैं अफगानिस्थान के राष्ट्रगान में भी गुर्जरो का विवरण नश्ल में किया गया है जो उधर ऊपरी दोआब में मौजूद है अफगानिस्तान के राष्ट्रगान का विवरण कुछ इस प्रकार है
"अरबों की और गुज्जरों की,
पामिरियों, नूरिस्तानीयों
ब्राहुइयों की और किज़िलबाशों की,
एमाक्यों और पाशाइयों की भी"
इस्लाम के आगमन के बाद यहां एक नई क्रांति की शुरुआत हुई। बुद्ध के शांति के मार्ग को छोड़कर ये लोग क्रांति के मार्ग पर चल पड़े। शीतयुद्ध के दौरान अफगानिस्तान को तहस-नहस कर दिया गया। यहां की संस्कृति और प्राचीन धर्म के चिह्न मिटा दिए गए। लेकिन धर्म बदलने के बाद भी आज तक ये लोग "ये माना पंथ बदला है मगर पुरखे नही बदले "की कहावत को सच साबित करते हैं क्यों कि आज भी
अफगानिस्तान के गांवों में बच्चों के नाम आपको कनिष्क, आर्यन, वेद ,मिहिर, जयपाल, साही, देबपुत्र आदि नाम मिलेंगे।दरअसल, अंग्रेजी शासन में पिंडारियों के रूप में जो अंग्रेजों से लड़े, वे विशेषकर पठान गुज्जर और जाट ही थे। पठान जाट और गुज्जरों के समुदाय का ही एक वर्ग है। कुछ लोग इन्हें बनी इसराइलियों का वंशज मानते हैं जो की बेबुनियाद है पठानों में गुज्जरों की सबसे ज्यादा चौहान, कुषाण, हुन आदि की बदली हुई है जिसमे आज भी खटानाओ के राजधानी थी पुरातत्वविदों ने खैबर पख्तूनख्वाह के हुंद गांव में और खुदाई की मांग की है हुन्द हुन का ही बदला स्वरूप है जिसको आज भी अफगनिस्तान से लेकर भारत तक गुर्जरों का राजवंशी गोत्र है तथा आज भी संख्या बल में ज्यादा है पुरातत्व वेदियों ने माग की ताकि उस समय की सभ्यता को समझा जा सकें। हुंद को हिंदू शाही वंश की राजधानी कहा जाता है। हुंद खैबर पख्तूनख्वाह में सबसे समृद्ध पुरातात्विक स्थल है और कहा जाता है कि सिंकदर महान तक्षशिला को जीतने से पहले हुंद में ही रुका था। अफगनिस्तान पे पररम्भ से इस्वी पूर्व के लगभग 200साल पहले से गुर्जरों ने राज करना पररम्भ कर दिया था जिसमे कुषाण ,तुअर, खटाने आदि शामिल थे आज भी स्वात घाटी के महराज खटाने वंश के बालिये स्वात के नाम से जाना जाता है ।आजकल हम जिस बगराम हवाई अड्डे का नाम बहुत सुनते हैं, वह कभी कुषाणों की राजधानी था। उसका नाम था कपीसी।
पुले-खुमरी से 16 किमी उत्तर में सुर्ख कोतल नामक जगह में कनिष्क-काल के भव्य खंडहर अब भी देखे जा सकते हैं। इन्हें आजकल ‘कुहना मस्जिद' के नाम से जाना जाता है। पेशावर और लाहौर के संग्रहालयों में इस काल की विलक्षण कलाकृतियां अब भी सुरक्षित हैं।अफगानिस्तान के बामियान, जलालाबाद, बगराम, काबुल, बल्ख आदि स्थानों में अनेक मूर्तियों, स्तूपों, संघारामों, विश्वविद्यालयों और मंदिरों के अवशेष मिलते हैं। काबुल के आसामाई मंदिर को 2,000 साल पुराना बताया जाता है। आसामाई पहाड़ पर खड़ी पत्थर की दीवार को ‘हिन्दूशाहों' द्वारा निर्मित परकोटे के रूप में देखा जाता। है। जिन नदियों को आजकल हम आमू, काबुल, कुर्रम, रंगा, गोमल, हरिरुद आदि नामों से जानते हैं, उन्हें प्राचीन भारतीय लोग क्रमश: वक्षु, कुभा, कुरम, रसा, गोमती, हर्यू या सर्यू के नाम से जानते थे।
जिन स्थानों के नाम आजकल काबुल, कंधार, बल्ख, वाखान, बगराम, पामीर, बदख्शां, पेशावर, स्वात, चारसद्दा आदि हैं, उन्हें संस्कृत और प्राकृत-पालि साहित्य में क्रमश: कुभा या कुहका, गंधार, बाल्हीक, वोक्काण, कपिशा, मेरू, कम्बोज, पुरुषपुर (पेशावर), सुवास्तु, पुष्कलावती आदि के नाम से जाना जाता था अंतिम हिन्दूशाही राजवंश :
सन् 843 ईस्वी में कल्लार नामक राजा ने हिन्दूशाही की स्थापना की। तत्कालीन सिक्कों से पता चलता है कि कल्लार के पहले भी रुतविल या रणथल, स्पालपति और लगतुरमान नामक हिन्दू या बौद्घ राजाओं का गांधार प्रदेश में राज था। ये स्वयं को कनिष्क का वंशज भी मानते थे।
हिन्दू राजाओं को ‘काबुलशाह' या ‘महाराज धर्मपति' साही वंश ,देबपुत्र ,कहा जाता था। इन राजाओं में कल्लार, सामंतदेव खटाना, भीम खटाना, अष्टपाल खटाना, जयपाल खटाना, आनंदपाल खटाना, त्रिलोचनपाल खटाना, भीमपाल खटाना,आदि उल्लेखनीय हैं।
इन राजाओं ने लगभग 350 साल तक अरब आततायियों और लुटेरों को जबर्दस्त टक्कर दी और उन्हें सिंधु नदी पार करके भारत में नहीं घुसने दिया, लेकिन 1019 में महमूद गजनी से त्रिलोचनपाल की हार के साथ अफगानिस्तान का इतिहास पलटी खा गया।चीनी यात्री युवानच्वांग ने इस्लाम व अफगानिस्तान के बौद्धकाल का इतिहास लिखा है। गौतम बुद्ध अफगानिस्तान में लगभग 6 माह ठहरे थे। बौद्धकाल में अफगानिस्तान की राजधानी बामियान हुआ करती थी। प्रमुख गुर्जर कबीले जो बाद में गोत्र में परिवर्तित हुए हैं -चेची: प्राचीन चीनी इतिहासकारों के अनुसार बैक्ट्रिया आगमन से पहले कुषाण परिसंघ की भाई-बंद खापे और कबीले यूची कहलाते थे| वास्तव में यूची भी भाई-बंद खापो और कबीलों का परिसंघ था, जोकि अपनी शासक परिवार अथवा खाप के नाम पर यूची कहलाता था| बैक्ट्रिया में शासक परिवार या खाप कुषाण हो जाने पर यूची परिसंघ कुषाण कहलाने लगा ।गोर्सी: एलेग्जेंडर कनिंघम के अनुसार कुषाणों के सिक्को पर कुषाण को कोर्स अथवा गोर्स भी पढ़ा जा सकता हैं| उनका कहना हैं गोर्स से ही गोर्सी बना हैं| गोर्सी गोत्र भी अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत में मिलता हैं|खटाना: संख्या और क्षेत्र विस्तार की दृष्टी से खटाना गुर्जरों का एक राजसी गोत्र हैं| अफगानिस्तान में यह एक प्रमुख गुर्जर गोत्र हैं| पाकिस्तान स्थित झेलम गुजरात में खाटाना सामाजिक और और आर्थिक बहुत ही मज़बूत हैं| पाकिस्तान के गुर्जरों में यह परंपरा हैं कि हिन्द शाही वंश के राजा जयपाल और आनंदपाल खटाना थे।नेकाड़ी: राजस्थान के गुर्जरों में नेकाड़ी धार्मिक दृष्टी से पवित्रतम गोत्र माना जाता हैं| अफगानिस्तान और भारत में नेकाड़ी गोत्र पाया जाता हैं।बरगट: बरगट गोत्र अफगानिस्तान और भारत के राजस्थान इलाके में पाया जाता हैं|कसाना: अलेक्जेंडर कनिंघम ने आर्केलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, खंड IV, 1864 में कुषाणों की पहचान आधुनिक गुर्जरों से की है| अपनी इस धारणा के पक्ष में कहते हैं कि आधुनिक गुर्जरों का कसाना गोत्र कुषाणों का प्रतिनिधि हैं| अलेक्जेंडर कनिंघम बात का महत्व इस बात से और बढ़ जाता है कि गुर्जरों का कसाना गोत्र क्षेत्र विस्तार एवं संख्याबल की दृष्टि से सबसे बड़ा है। कसाना गौत्र अफगानिस्तान से महाराष्ट्र तक फैला हुआ है| कसानो के सम्बंध में पूर्व में ही काफी कहा चुका हैं|कपासिया: गुर्जरों की कपासिया खाप का निकास कुषाणों की राजधानी कपिशा (बेग्राम) से प्रतीत होता हैं|बैंसला: गुर्जरों की बैंसला खाप का नाम संभवतः कुषाण सम्राट की उपाधि से आया हैं| कुषाण सम्राट कुजुल कडफिस ने ‘बैंसिलिओस’ (Basileos) उपाधि धारण की थी| कनिष्क ने यूनानी उपाधि ‘बैसिलिअस बैंसिलोंन’ (Basileus Basileon) धारण की थी, जिसका अर्थ हैं राजाओ का राजा (King of King)|हरषाना, सिरान्धना, करहाना, रजाना, फागना, महाना, अमाना, करहाना, अहमाना, चपराना/चापराना, रियाना, अवाना, चांदना आदि| संख्या बल की दृष्टी से ये गुर्जरों के बड़े गोत्र हैं| सभवतः इन सभी खापो का सम्बन्ध कुषाण परिसंघ से रहा हैं इनके अतिरिक्त कुछ प्रमुख गोत्र हकला , कामर, फामडा , चौहान, सोलंकी, तूर, तुअर, हुण, हरहुन, हुग, गोचर, पोसवाल,मोटला, छाबड़ा,मिलू, आदि मौजूद हैैं.
लेखक- इंजी.राम प्रताप सिंह
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गुर्जर साम्राट कुषाण /कसाना वंशी महराज कनिष्क |
"अरबों की और गुज्जरों की,
पामिरियों, नूरिस्तानीयों
ब्राहुइयों की और किज़िलबाशों की,
एमाक्यों और पाशाइयों की भी"
इस्लाम के आगमन के बाद यहां एक नई क्रांति की शुरुआत हुई। बुद्ध के शांति के मार्ग को छोड़कर ये लोग क्रांति के मार्ग पर चल पड़े। शीतयुद्ध के दौरान अफगानिस्तान को तहस-नहस कर दिया गया। यहां की संस्कृति और प्राचीन धर्म के चिह्न मिटा दिए गए। लेकिन धर्म बदलने के बाद भी आज तक ये लोग "ये माना पंथ बदला है मगर पुरखे नही बदले "की कहावत को सच साबित करते हैं क्यों कि आज भी
अफगानिस्तान के गांवों में बच्चों के नाम आपको कनिष्क, आर्यन, वेद ,मिहिर, जयपाल, साही, देबपुत्र आदि नाम मिलेंगे।दरअसल, अंग्रेजी शासन में पिंडारियों के रूप में जो अंग्रेजों से लड़े, वे विशेषकर पठान गुज्जर और जाट ही थे। पठान जाट और गुज्जरों के समुदाय का ही एक वर्ग है। कुछ लोग इन्हें बनी इसराइलियों का वंशज मानते हैं जो की बेबुनियाद है पठानों में गुज्जरों की सबसे ज्यादा चौहान, कुषाण, हुन आदि की बदली हुई है जिसमे आज भी खटानाओ के राजधानी थी पुरातत्वविदों ने खैबर पख्तूनख्वाह के हुंद गांव में और खुदाई की मांग की है हुन्द हुन का ही बदला स्वरूप है जिसको आज भी अफगनिस्तान से लेकर भारत तक गुर्जरों का राजवंशी गोत्र है तथा आज भी संख्या बल में ज्यादा है पुरातत्व वेदियों ने माग की ताकि उस समय की सभ्यता को समझा जा सकें। हुंद को हिंदू शाही वंश की राजधानी कहा जाता है। हुंद खैबर पख्तूनख्वाह में सबसे समृद्ध पुरातात्विक स्थल है और कहा जाता है कि सिंकदर महान तक्षशिला को जीतने से पहले हुंद में ही रुका था। अफगनिस्तान पे पररम्भ से इस्वी पूर्व के लगभग 200साल पहले से गुर्जरों ने राज करना पररम्भ कर दिया था जिसमे कुषाण ,तुअर, खटाने आदि शामिल थे आज भी स्वात घाटी के महराज खटाने वंश के बालिये स्वात के नाम से जाना जाता है ।आजकल हम जिस बगराम हवाई अड्डे का नाम बहुत सुनते हैं, वह कभी कुषाणों की राजधानी था। उसका नाम था कपीसी।
पुले-खुमरी से 16 किमी उत्तर में सुर्ख कोतल नामक जगह में कनिष्क-काल के भव्य खंडहर अब भी देखे जा सकते हैं। इन्हें आजकल ‘कुहना मस्जिद' के नाम से जाना जाता है। पेशावर और लाहौर के संग्रहालयों में इस काल की विलक्षण कलाकृतियां अब भी सुरक्षित हैं।अफगानिस्तान के बामियान, जलालाबाद, बगराम, काबुल, बल्ख आदि स्थानों में अनेक मूर्तियों, स्तूपों, संघारामों, विश्वविद्यालयों और मंदिरों के अवशेष मिलते हैं। काबुल के आसामाई मंदिर को 2,000 साल पुराना बताया जाता है। आसामाई पहाड़ पर खड़ी पत्थर की दीवार को ‘हिन्दूशाहों' द्वारा निर्मित परकोटे के रूप में देखा जाता। है। जिन नदियों को आजकल हम आमू, काबुल, कुर्रम, रंगा, गोमल, हरिरुद आदि नामों से जानते हैं, उन्हें प्राचीन भारतीय लोग क्रमश: वक्षु, कुभा, कुरम, रसा, गोमती, हर्यू या सर्यू के नाम से जानते थे।
जिन स्थानों के नाम आजकल काबुल, कंधार, बल्ख, वाखान, बगराम, पामीर, बदख्शां, पेशावर, स्वात, चारसद्दा आदि हैं, उन्हें संस्कृत और प्राकृत-पालि साहित्य में क्रमश: कुभा या कुहका, गंधार, बाल्हीक, वोक्काण, कपिशा, मेरू, कम्बोज, पुरुषपुर (पेशावर), सुवास्तु, पुष्कलावती आदि के नाम से जाना जाता था अंतिम हिन्दूशाही राजवंश :
सन् 843 ईस्वी में कल्लार नामक राजा ने हिन्दूशाही की स्थापना की। तत्कालीन सिक्कों से पता चलता है कि कल्लार के पहले भी रुतविल या रणथल, स्पालपति और लगतुरमान नामक हिन्दू या बौद्घ राजाओं का गांधार प्रदेश में राज था। ये स्वयं को कनिष्क का वंशज भी मानते थे।
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अफगानिस्तान के आर्य नस्लीय मुस्लिम गुर्जर |
इन राजाओं ने लगभग 350 साल तक अरब आततायियों और लुटेरों को जबर्दस्त टक्कर दी और उन्हें सिंधु नदी पार करके भारत में नहीं घुसने दिया, लेकिन 1019 में महमूद गजनी से त्रिलोचनपाल की हार के साथ अफगानिस्तान का इतिहास पलटी खा गया।चीनी यात्री युवानच्वांग ने इस्लाम व अफगानिस्तान के बौद्धकाल का इतिहास लिखा है। गौतम बुद्ध अफगानिस्तान में लगभग 6 माह ठहरे थे। बौद्धकाल में अफगानिस्तान की राजधानी बामियान हुआ करती थी। प्रमुख गुर्जर कबीले जो बाद में गोत्र में परिवर्तित हुए हैं -चेची: प्राचीन चीनी इतिहासकारों के अनुसार बैक्ट्रिया आगमन से पहले कुषाण परिसंघ की भाई-बंद खापे और कबीले यूची कहलाते थे| वास्तव में यूची भी भाई-बंद खापो और कबीलों का परिसंघ था, जोकि अपनी शासक परिवार अथवा खाप के नाम पर यूची कहलाता था| बैक्ट्रिया में शासक परिवार या खाप कुषाण हो जाने पर यूची परिसंघ कुषाण कहलाने लगा ।गोर्सी: एलेग्जेंडर कनिंघम के अनुसार कुषाणों के सिक्को पर कुषाण को कोर्स अथवा गोर्स भी पढ़ा जा सकता हैं| उनका कहना हैं गोर्स से ही गोर्सी बना हैं| गोर्सी गोत्र भी अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत में मिलता हैं|खटाना: संख्या और क्षेत्र विस्तार की दृष्टी से खटाना गुर्जरों का एक राजसी गोत्र हैं| अफगानिस्तान में यह एक प्रमुख गुर्जर गोत्र हैं| पाकिस्तान स्थित झेलम गुजरात में खाटाना सामाजिक और और आर्थिक बहुत ही मज़बूत हैं| पाकिस्तान के गुर्जरों में यह परंपरा हैं कि हिन्द शाही वंश के राजा जयपाल और आनंदपाल खटाना थे।नेकाड़ी: राजस्थान के गुर्जरों में नेकाड़ी धार्मिक दृष्टी से पवित्रतम गोत्र माना जाता हैं| अफगानिस्तान और भारत में नेकाड़ी गोत्र पाया जाता हैं।बरगट: बरगट गोत्र अफगानिस्तान और भारत के राजस्थान इलाके में पाया जाता हैं|कसाना: अलेक्जेंडर कनिंघम ने आर्केलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, खंड IV, 1864 में कुषाणों की पहचान आधुनिक गुर्जरों से की है| अपनी इस धारणा के पक्ष में कहते हैं कि आधुनिक गुर्जरों का कसाना गोत्र कुषाणों का प्रतिनिधि हैं| अलेक्जेंडर कनिंघम बात का महत्व इस बात से और बढ़ जाता है कि गुर्जरों का कसाना गोत्र क्षेत्र विस्तार एवं संख्याबल की दृष्टि से सबसे बड़ा है। कसाना गौत्र अफगानिस्तान से महाराष्ट्र तक फैला हुआ है| कसानो के सम्बंध में पूर्व में ही काफी कहा चुका हैं|कपासिया: गुर्जरों की कपासिया खाप का निकास कुषाणों की राजधानी कपिशा (बेग्राम) से प्रतीत होता हैं|बैंसला: गुर्जरों की बैंसला खाप का नाम संभवतः कुषाण सम्राट की उपाधि से आया हैं| कुषाण सम्राट कुजुल कडफिस ने ‘बैंसिलिओस’ (Basileos) उपाधि धारण की थी| कनिष्क ने यूनानी उपाधि ‘बैसिलिअस बैंसिलोंन’ (Basileus Basileon) धारण की थी, जिसका अर्थ हैं राजाओ का राजा (King of King)|हरषाना, सिरान्धना, करहाना, रजाना, फागना, महाना, अमाना, करहाना, अहमाना, चपराना/चापराना, रियाना, अवाना, चांदना आदि| संख्या बल की दृष्टी से ये गुर्जरों के बड़े गोत्र हैं| सभवतः इन सभी खापो का सम्बन्ध कुषाण परिसंघ से रहा हैं इनके अतिरिक्त कुछ प्रमुख गोत्र हकला , कामर, फामडा , चौहान, सोलंकी, तूर, तुअर, हुण, हरहुन, हुग, गोचर, पोसवाल,मोटला, छाबड़ा,मिलू, आदि मौजूद हैैं.
में उपरोक्त तथ्यों से सहमत हूं।। पर वाम पंथी, मुगल ऑर अंग्रेजो ने हमारे इतिहास को मिटाने की हर संभव कोशिश की। पर कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी सदियों से दुश्मन रहा है जमाना हमारा।। जय गुर्जर।। जय हिन्द।।
ReplyDeleteमिटा नहीं सका को ही वह पूरा है आर्यव्रत था कहीं कबीलों में मिले तो कहीं खंडों में मिले गुज्जर जाति महान था
ReplyDeleteGURJAR ekta jindabad 💪💪
ReplyDelete🙏🙏🙏
ReplyDeleteGurjar Khatana ajeetpura alwar jindabad
ReplyDeleteमहानतम जानकारी
ReplyDeleteGurjar ki जय
ReplyDeleteGurjar akta jindabad
ReplyDeleteHelo
ReplyDeleteVery good
ReplyDeleteBakwas fake details di gai hai
ReplyDeleteJai gurjar samaj 🙏
ReplyDeleteजय हो गुर्जर समाज की सुनील खटाना गुर्जर हिमाचल प्रदेश कांगड़ा
ReplyDeleteजय गुर्जर समाज
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